संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....
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(साभार: Arun Lavania) संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने "दोहा शतक" 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है। इसे रायबरेली के तालुकदार राय बहादुर बाबू सिंह जी 1944 में प्रकाशित किया।यह राम जंत्रालय प्रेस से छपा।यह एक ही बार छपा और इसकी एक कौपी जौनपुर के शांदिखुर्द गांव में उपलब्ध है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जी ने जो कि बाबर के समकालीन भी थे, राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
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(साभार: Arun Lavania) संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने "दोहा शतक" 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है। इसे रायबरेली के तालुकदार राय बहादुर बाबू सिंह जी 1944 में प्रकाशित किया।यह राम जंत्रालय प्रेस से छपा।यह एक ही बार छपा और इसकी एक कौपी जौनपुर के शांदिखुर्द गांव में उपलब्ध है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जी ने जो कि बाबर के समकालीन भी थे, राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
गोस्वामी जी ने 'तुलसी दोहा शतक' में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया .....
मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
सिखा सूत्र से हीन करी, बल ते हिन्दू लोग।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
सम्बत सर वसु बाण नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
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दोहा अर्थ सहित नीचे पढ़ें।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
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दोहा अर्थ सहित नीचे पढ़ें।
(1) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।
(2) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।
(3) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।
(4) रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
(5) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।
(6) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
(7) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(8) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में रामजन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है।
(साभार धन्यवाद माननीय श्री Arun Lavania)
७ दिसंबर २०१७
७ दिसंबर २०१७
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