Monday, 26 March 2018

भारत का कल्याण सिर्फ "धर्म" से ही हो सकता है .....

भारत का कल्याण सिर्फ "धर्म" से ही हो सकता है .....
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भारत एक आध्यात्मिक देश है जिसका प्राण ...'धर्म' ... है| भारत सदा धर्मसापेक्ष रहा है, वह कभी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता| भारत की आत्मा 'धर्म' है| 'धर्म' सनातन है, और इसकी सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारतवर्ष में हुई है| श्रीअरविन्द के शब्दों में 'सनातन धर्म' भारत है और भारत 'सनातन धर्म' है| भारत का भविष्य 'सनातन धर्म' पर निर्भर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारत के भविष्य पर निर्भर है, और इस सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी के भविष्य पर निर्भर है| भारत की राजनीति भी सनातन धर्म ही हो सकती है| भारत में 'धर्म' को नष्ट करने हेतु किये जा रहे मर्मान्तक प्रहार इस सभ्यता और सृष्टि का नाश कर देंगे| 'धर्म' को तो भगवान कभी नष्ट नहीं होने देंगे|
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धर्म को नष्ट करने के प्रयासों का जन्म मनुष्य की वासनाओं से होता है| ये वासनाएँ हैं -- लोभ, अहंकार, कामुकता, विलासिता, मोह व ईर्ष्या आदि| ये जन्म जन्मान्तरों में एकत्र होकर मनुष्य के चित्त में गहराई से बैठ जाती हैं और अवसर मिलते ही प्रकट हो जाती हैं| ये ही चित्त की वृत्तियाँ हैं जिनके निरोध को 'योग' कहा गया है| इन वासनाओं पर संकल्प शक्ति द्वारा नियन्त्रण नहीं किया जा सकता| ये दूर होती है ब्रह्मज्ञान से| ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है अहैतुकी परमप्रेमरूपा भक्ति, अष्टांगयोग साधना, शरणागति, समर्पण, स्वाध्याय और हरिकृपा से| गीता ब्रह्मज्ञान का ग्रन्थ है|
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हम सब की समष्टि दृष्टि होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत दृष्टी| ईश्वर की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर ही ध्यान और समर्पण होना चाहिए| अपनी दूष्टि को व्यक्तिगत रखेंगे तो उन्नति कभी नहीं होगी| जब समाज की उन्नति का आधार व्यक्ति नहीं ब्रह्म ज्ञान बनेगा तभी समाज की उन्नति होगी| समाज और देश का कल्याण केवल ब्रह्म ज्ञान से ही हो सकता है| हम सब ब्रह्म-चिन्तन के अनुगामी बनें| सबके मंगल में ही अपना मंगल है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०१६

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