Sunday 4 March 2018

द्वेषी और क्रूर लोगों की गति :--

द्वेषी और क्रूर लोगों की गति :--
भगवान कहते हैं ....
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ||१६:१९||

आचार्य शंकर ने इसकी व्याख्या की है ..... "तान् अहं सन्मार्गप्रतिपक्षभूतान् साधुद्वेषिणः द्विषतश्च मां क्रूरान् संसारेषु एव अनेकनरकसंसरणमार्गेषु नराधमान् अधर्मदोषवत्त्वात् क्षिपामि प्रक्षिपामि अजस्रं संततम् अशुभान् अशुभकर्मकारिणः आसुरीष्वेव क्रूरकर्मप्रायासु व्याघ्रसिंहादियोनिषु क्षिपामि इत्यनेन संबन्धः||"

अर्थात् सन्मार्ग के प्रतिपक्षी और मेरे तथा साधुपुरुषोंके साथ द्वेष करनेवाले उन सब अशुभकर्मकारी क्रूर नराधमोंको मैं बारंबार संसारमें -- नरकप्राप्तिके मार्गमें जो प्रायः क्रूर कर्म करने वाली व्याघ्रसिंह आदि आसुरी योनियाँ हैं उनमें ही सदा गिराता हूँ क्योंकि वे पापादि दोषोंसे युक्त हैं| क्षिपामि इस क्रियापदका योनिषु के साथ सम्बन्ध है|
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द्वेष पूर्वक क्रोध करने वाले नराधम की श्रेणी में आते हैं| नर शब्द का अर्थ है जो विषयों में रमण न करे| नराधमान् वे नरों में अधम हैं| क्षिपामि अर्थात् फैंकता हूँ|
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आसुरी योनी में जन्म लेकर क्या होता है ? भगवान कहते हैं ....
असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि| मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्||१६:२०||
अर्थात ..... अविवेकीजन प्रत्येक जन्म में आसुरी योनि को पाते हुए जिनमें तमोगुणकी बहुलता है ऐसी योनियों में जन्मते हुए नीचे गिरते गिरते मुझ ईश्वरको न पाकर उन पूर्वप्राप्त योनियोंकी अपेक्षा और भी अधिक अधम गति को प्राप्त होते हैं|
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अतः किसी से द्वेष न करें और क्रूरता पर विजय पायें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ मार्च २०१८

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