Sunday 4 March 2018

मैं कर्ता हूँ या अकर्ता ? .....

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अति गंभीरता से विचारणीय एक महत्वपूर्ण विषय :---
गीता में भगवान कहते हैं.....
यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते | हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ||१८:१७||
इसका भावार्थ यह है कि जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मारता है और न (पाप, पुण्य से) बँधता है||
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आचार्य शंकर, आचार्य श्रीधर स्वामी, आचार्य मधुसुदन सरस्वती, योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी और परमहंस योगानंद जैसे अनेक महान आचार्यों ने उपरोक्त श्लोक की बहुत विस्तार से व्याख्या की है| वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में इसे समझना अति आवश्यक है|

सबसे अच्छी विधी तो यह होगी कि इस का स्वयं अध्ययन करो, फिर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करो, और अंत में जो भी जैसा भी भगवान की कृपा से समझ में आये उसे स्वीकार कर लो|
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मैं कर्ता या अकर्ता हूँ ये दो प्रकार के मनोभाव हैं| अहंकारशून्य आत्मज्ञ पुरुष को ये दोनों ही भाव नहीं रहते| आत्मा के शुद्ध स्वरुप में कोई 'अध्यास' नहीं है| कौन भोक्ता है और और कौन कर्ता है, इसके समझने से पूर्व यह जान लें कि मैं कौन हूँ और मेरा स्वरुप क्या है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सब को सप्रेम सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०१८
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पुनश्चः :-- "अध्यास", अद्वैत वेदांत का एक पारिभाषिक शब्द है| एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भास 'अध्यास' कहलाता है|

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