Tuesday 27 December 2016

साधना में कर्ताभाव से मुक्त रहें .....

अपनी व्यक्तिगत साधना/उपासना के पश्चात उससे प्राप्त आनंद में तो रहें पर कर्ताभाव को बिलकुल भी आस-पास न आने दें| देह और मन की चेतना से ऊपर उठें|

हम ध्यान की अनुभूतियों से ऊपर हैं, मानसिक रूप से जो भी अनुभूत होता है वह हम नहीं है| एकमात्र कर्ता परमात्मा है, अतः किसी भी तरह का अभिमान या दंभ हम में नहीं आना चाहिए| सिर्फ परमात्मा की चेतना में रहें| जो हैं सो परमात्मा ही हैं, हम तो हैं ही नहीं| वे ही कर्ता हैं और वे ही भोक्ता हैं|

किसी भी विभूति की कामना न हो और न ही तुरीयावस्था और तुरीयातीत आदि अवस्थाओं का चिंतन हो| साध्य साधना और साधक, दृष्टी दृश्य और दृष्टा भी वे ही हैं|

पूर्ण समर्पण, पूर्ण समर्पण और पूर्ण समर्पण ...... बस यही साधना का ध्येय है| इसमें कुछ भी प्राप्त करने को नहीं है, सिर्फ और सिर्फ समर्पण ही है| यह देह, मन, बुद्धि आदि सब कुछ, यहाँ तक कि साधन भी उसी का है| सब कामनाएँ विसर्जित हों|

हे परमशिव कृपा करो | हमारा पूर्ण समर्पण स्वीकार करो |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

1 comment:

  1. जब दोनों नासिकाओं से साँस चल रही है वह सर्वश्रष्ठ समय/मुहूर्त होता है जिसका उपयोग भगवान की भक्ति/ध्यान आदि में करना चाहिए|
    हठयोग में कुछ क्रियाएँ और प्राणायाम हैं जिनसे नाड़ीशोधन होता है और दोनों नासिकाएँ खुली रहती हैं| कोई मेडिकल समस्या हो जैसे नाक में DNS या Allergy, तो उसका उपचार भी बहुत सस्ता और सुलभ है जो कोई भी अच्छा ENT सर्जन कर देता है|

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