आज के इस युग में सद्गृहस्थ ही अधिक सकारात्मक कार्य कर सकते हैं ....
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वर्तमान समय में जो सज्जन हैं उनकी नियति में कष्ट पाना ही अधिक लिखा है| पर इससे उनको विचलित नहीं होना चाहिए| दुर्जन अधिक सुखी दिखाई दे रहे हैं पर वे भीतर से खोखले हैं| कष्ट पाकर भी सज्जनों को विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकी यह आवश्यक नहीं है कि जो दिखाई दे रहा है वह सत्य ही है|
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किसी भी परिस्थिति में अपना सदाचरण नहीं छोड़ना चाहिए| हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं ..... महत्व सिर्फ इसी का है| नश्वर मनुष्य क्या सोचते हैं इसका अधिक महत्व नहीं है|
किसी भी व्यक्ति का आचरण और विचार देखकर ही यह तय करें कि वह कैसा है| किसी की वेश-भूषा और ऊंची ऊंची बातों से घोखा न खाएँ|
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एक बार एक शराब की दूकान के बाहर कुछ साधू वेशधारी पंक्तिबद्ध खड़े थे| यह देखकर मुझे बहुत पीड़ा हुई| पता लगाया तो ज्ञात हुआ उनकी घर-गृहस्थी भी थी| दिन में ये लोग साधू बनकर भीख मांगते और रात में उन पैसों से जमकर शराब पीते और चोरी भी करते| किसी ने साधू का वेश धारण कर रखा है इसका अर्थ यह नहीं है कि वह साधू ही है|
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विदेशी जासूस भी भारत में सदा साधू के वेश में रहे और देश का बहुत अहित किया| मध्य एशिया,मध्यपूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से आये लुटेरे आक्रमणकारी अपने आक्रमण से पूर्व सदा अपने तथाकथित संतों को पहिले भेजते थे| वे यहाँ आकर आक्रमण की भुमिका बनाकर मार्गदर्शक का कार्य ही नही, आतताइयों के के लिए खाने पीने की व्यवस्था भी करते थे| पुर्तगाली और अँगरेज़ भी अपनी आक्रमणों से पूर्व जासूस पादरियों की सेना भेजते थे|
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भारत के जितने भी साधू संत पश्चिम में गए उनके साथ सदा अँगरेज़ जासूस साधू वेश में रहते थे| स्वामी रामतीर्थ ने लिखा है कि जब वे हिमालय की एक एकांत कन्दरा में तपस्या करते थे तो वहाँ भी हर समय एक अँगरेज़ जासूस साधू वेश में उनकी निगाह रखता था| एक बार वह अँगरेज़ साधू वेशधारी जासूस भूखा बैठा था तो स्वामी रामतीर्थ को दया आई और उन्होंने अपने मित्र सरदार पूरण सिंह को बोलकर उसके लिए भोजन की व्यवस्था करवाई और उस अँगरेज़ को बताया कि उनकी विश्व यात्रा के समय भी वह एक पादरी के वेश में सदा उनके साथ रहता था| उस अँगरेज़ जासूस को बड़ी ग्लानि हुई और वह अपनी नौकरी छोड़कर बापस अपने देश चला गया|
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वर्तमान समय में भी स्थिति ऐसी ही है किसी के बारे में भी अपने विचार उसके आचरण को देखकर ही बनाएं, उसकी मीठी बातों और वेशभूषा से नहीं| जो लोग साधू बने और जिन्होंने अपनी साधना नहीं की वे मात्र एक भिखारी ही बन पाए| धूने की लकड़ियों के लिए भी कई बार साधुओं को बुरी तरह लड़ते देखा है|
एक बार दो साधुओं के मध्य में मैं बैठ गया तो वे मुझसे लड़ पड़े और कहने लगे कि साधुओं की बराबरी में क्यों बैठे हो? नीचे दूर बैठो|
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संत अपने आचरण से और अपनी गरिमा से ही पहिचाना जाता है| श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ और तपस्वी ही वास्तविक संत हैं|
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इस युग में आध्यात्म जगत में भी सद्गृहस्थों ने बहुत सकारात्माक कार्य किये हैं और कर रहे हैं| गृहस्थ अपने धर्म को निभाएं, और परमात्मा को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं| आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो| आप सब को शुभ कामनाएँ और आपमें हृदयस्थ प्रभु को नमन|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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वर्तमान समय में जो सज्जन हैं उनकी नियति में कष्ट पाना ही अधिक लिखा है| पर इससे उनको विचलित नहीं होना चाहिए| दुर्जन अधिक सुखी दिखाई दे रहे हैं पर वे भीतर से खोखले हैं| कष्ट पाकर भी सज्जनों को विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकी यह आवश्यक नहीं है कि जो दिखाई दे रहा है वह सत्य ही है|
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किसी भी परिस्थिति में अपना सदाचरण नहीं छोड़ना चाहिए| हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं ..... महत्व सिर्फ इसी का है| नश्वर मनुष्य क्या सोचते हैं इसका अधिक महत्व नहीं है|
किसी भी व्यक्ति का आचरण और विचार देखकर ही यह तय करें कि वह कैसा है| किसी की वेश-भूषा और ऊंची ऊंची बातों से घोखा न खाएँ|
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एक बार एक शराब की दूकान के बाहर कुछ साधू वेशधारी पंक्तिबद्ध खड़े थे| यह देखकर मुझे बहुत पीड़ा हुई| पता लगाया तो ज्ञात हुआ उनकी घर-गृहस्थी भी थी| दिन में ये लोग साधू बनकर भीख मांगते और रात में उन पैसों से जमकर शराब पीते और चोरी भी करते| किसी ने साधू का वेश धारण कर रखा है इसका अर्थ यह नहीं है कि वह साधू ही है|
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विदेशी जासूस भी भारत में सदा साधू के वेश में रहे और देश का बहुत अहित किया| मध्य एशिया,मध्यपूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से आये लुटेरे आक्रमणकारी अपने आक्रमण से पूर्व सदा अपने तथाकथित संतों को पहिले भेजते थे| वे यहाँ आकर आक्रमण की भुमिका बनाकर मार्गदर्शक का कार्य ही नही, आतताइयों के के लिए खाने पीने की व्यवस्था भी करते थे| पुर्तगाली और अँगरेज़ भी अपनी आक्रमणों से पूर्व जासूस पादरियों की सेना भेजते थे|
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भारत के जितने भी साधू संत पश्चिम में गए उनके साथ सदा अँगरेज़ जासूस साधू वेश में रहते थे| स्वामी रामतीर्थ ने लिखा है कि जब वे हिमालय की एक एकांत कन्दरा में तपस्या करते थे तो वहाँ भी हर समय एक अँगरेज़ जासूस साधू वेश में उनकी निगाह रखता था| एक बार वह अँगरेज़ साधू वेशधारी जासूस भूखा बैठा था तो स्वामी रामतीर्थ को दया आई और उन्होंने अपने मित्र सरदार पूरण सिंह को बोलकर उसके लिए भोजन की व्यवस्था करवाई और उस अँगरेज़ को बताया कि उनकी विश्व यात्रा के समय भी वह एक पादरी के वेश में सदा उनके साथ रहता था| उस अँगरेज़ जासूस को बड़ी ग्लानि हुई और वह अपनी नौकरी छोड़कर बापस अपने देश चला गया|
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वर्तमान समय में भी स्थिति ऐसी ही है किसी के बारे में भी अपने विचार उसके आचरण को देखकर ही बनाएं, उसकी मीठी बातों और वेशभूषा से नहीं| जो लोग साधू बने और जिन्होंने अपनी साधना नहीं की वे मात्र एक भिखारी ही बन पाए| धूने की लकड़ियों के लिए भी कई बार साधुओं को बुरी तरह लड़ते देखा है|
एक बार दो साधुओं के मध्य में मैं बैठ गया तो वे मुझसे लड़ पड़े और कहने लगे कि साधुओं की बराबरी में क्यों बैठे हो? नीचे दूर बैठो|
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संत अपने आचरण से और अपनी गरिमा से ही पहिचाना जाता है| श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ और तपस्वी ही वास्तविक संत हैं|
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इस युग में आध्यात्म जगत में भी सद्गृहस्थों ने बहुत सकारात्माक कार्य किये हैं और कर रहे हैं| गृहस्थ अपने धर्म को निभाएं, और परमात्मा को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं| आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो| आप सब को शुभ कामनाएँ और आपमें हृदयस्थ प्रभु को नमन|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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