Tuesday 27 December 2016

नव वर्ष .....

नव वर्ष .....
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वैसे तो हर दिन ही नववर्ष है, पर हर दिन ही क्यों हर पल भी नूतन वर्ष है| जो बीत गया सो बीत गया पर आने वाला हर पल बीत चुके पल से अधिक सार्थक हो ..... यही नव वर्ष का संकल्प और अभिनन्दन हो|
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हमारा एकमात्र लक्ष्य है ..... परमात्मा की प्राप्ति| हम कैसे शरणागत हों व कैसे प्रभु को समर्पित/उपलब्ध हों ..... यही हमारी एकमात्र समस्या है| बाकि सब समस्याएँ तो परमात्मा की हैं|
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यदि हमारा शिव-संकल्प दृढ़ हो तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है| दृढ़ शिव-संकल्प हो तो सृष्टि की कोई भी शक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकती|
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सब तरह के नकारात्मक विचारों और भय से मुक्त होने की साधना करो| श्रुति भगवती जब कहती है कि हम परमात्मा के अंश और अमृतपुत्र हैं, तो परमात्मा की शक्ति भी हमारे भीतर निहित है| उस शक्ति का आवाहन कर अग्रसर हो जाओ साधना पथ पर| मार्गदर्शन और रक्षा करने के लिए प्रभु वचनबद्ध हैं|
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हमारे में लाख कमियाँ हैं पर उनका चिंतन ही मत करो| उनके प्रति कोई प्रतिक्रिया ही मत करो| परमात्मा की दिव्य उपस्थिति में वे सब कमियाँ भाग जायेंगी| कमलिनी कुलवल्लभ भगवान भुवनभास्कर जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो मार्ग में कहीं भी अन्धकार नहीं मिलता| वैसे ही जब आत्मसूर्य की ज्योति जागृत होगी तब अंतस का अन्धकार कहीं भी अवशिष्ट नहीं रहेगा|
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हमारी साधना समष्टि के कल्याण के लिए है क्योंकि अपने चैतन्य की गहराई में हम समष्टि के साथ एक हैं| जब हम अपना चिंतन करें तब साथ साथ दूसरों का भी चिंतन करें| मान लो किसी को भूत-प्रेत (बुराई) ने पकड रखा है तो आवश्यकता उसे उस प्रेतबाधा से मुक्त करने की है, न कि उसकी निंदा करने की या उसे मारने की| संसार को समय के प्रभाव से एक तरह के भूत-प्रेत ने पकड रखा है| निंदा करने से वह भूत नहीं भागेगा| उसके लिए तो उपाय करना होगा| आज भारत को कई भूत-प्रेतों (बुराइयों) ने पकड रखा है| उनसे देश को मुक्त कराने के लिए हमें एक ब्रह्मतेज की आवश्यकता है जो अनेक लोगों की साधना से प्रकट होगा| उसके प्रभाव से ही, ईश्वर की शक्ति से संयुक्त होकर ही हम कुछ प्रभावी और सार्थक कार्य कर सकते हैं| यही सबसे बड़ी सेवा होगी|
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अतः हर नूतन वर्ष का अभिनन्दन हम प्रभु की साधना द्वारा ही करें| जितना गहन ध्यान हम प्रभु का कर सकते हैं उतना करें और हर नए दिन हमारी साधना, हमारा ध्यान पिछले दिन से अधिक हो| यही हमारा नववर्ष का संकल्प हो|
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शराब पीकर, अभक्ष्य भक्षण कर, उन्मुक्त होकर नाच गाकर नववर्ष मनाने की परंपरा विजातीय है| उससे एक झूठी तृप्ति निज अहंकार को होती है पर उसका दुष्प्रभाव निज चेतना पर बहुत बुरा होता है| अपने साहस को जगाकर इस तरह की बुराई से बचो|
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हर नव वर्ष को प्रभु की चेतना में मनाओ| सदा ऐसे लोगों का संग करो जिनसे आपको सद्प्रेरणा मिलती हो| अधोगामी प्रवृति के लोगों से दूर रहो| यदि अच्छे लोगों का साथ नहीं मिलता है तो परमात्मा का साथ करो| वे तो सदा हमारे चैतन्य में हैं| परमात्मा की अनुभूति ध्यान साधना में सदा निश्चित रूप से होती है| ध्यान की गहराई में उतरो| सारे गुण अपने आप खिंचे चले आयेंगे|
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हमारे जीवन के भीतर और बाहर भगवान् की उपस्थिति निरंतर है| जैसे रेडियो को ट्यून करने पर ही चाहे हुए रेडियो स्टेशन की ध्वनी सुनती है वैसे ही सीधे होकर भ्रूमध्य में ध्यान करने से परमात्मा की उपस्थिति निश्चित रूप से होती है| एक पानी की बोतल को बंद कर यदि हम समुद्र में फेंक देते हैं तो बोतल का पानी समुद्र के पानी से नहीं मिल पाता | यदि ढक्कन को खोल देंगे तो बोतल का पानी समुद्र में मिल जाएगा| वैसे हमारे ऊपर से जब अज्ञान का आवरण हट जाएगा तो हम तत्क्षण परमात्मा के समक्ष होंगे| उस अज्ञान के आवरण को हटाने के लिए हमें भगवान् की शरणागत होना पडेगा तभी हम उन्हें उपलब्ध/समर्पित हो पायेंगे|
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प्रभु की अनंतता हमारा घर है| इस शरीर रुपी धर्मशाला में हम कुछ समय के लिए ही हैं| एक दिन सब कुछ छोडकर अनंत में चल देना होगा तब परमात्मा ही हमारे साथ होंगे| उनका साथ शाश्वत है| वे ही हमारे शाश्वत मित्र हैं| हर नववर्ष में उनसे मित्रता कर उनके साथ ही हम नववर्ष मनाएंगे|
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हर नववर्ष पर संकल्प करो की हम प्रभु के साथ हैं और हम सदा उनके साथ रहेंगे| यही नववर्ष के उत्सव की सार्थकता होगी|
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आप सब के ह्रदय में स्थित परमात्मा को प्रणाम| आप सब मेरी ही निजात्माएँ हैं| मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण प्यार आपको अर्पित है| आप सब के जीवन का हर क्षण मंगलमय हो| पुनश्चः शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

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