Tuesday 27 December 2016

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा .......

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा, तुम ही मेरे माता-पिता और सर्वस्व हो|
तुम्हारी कोई भी स्तुति नहीं की जा सकती क्योंकि तुम सब शब्दों से परे हो| सब शब्द तुम्हें सीमाओं में बाँधते है| तुम तो असीम हो| सारे शब्द भी तुम्हीं हो और सारे आकार भी तुम्हीं हो|
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दशों दिशाएँ तुम्हारे वस्त्र हैं, सम्पूर्ण सृष्टि ..... सारी आकाश गंगाएँ, प्रत्येक अणु और प्रत्येक ऊर्जाकण तुम्हीं हो| सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्ही हो| तुम सच्चिदानंद हो| तुम्हारी अनुभूती आनंद रूप में क्या सिर्फ समाधि में ही होती है? स्वयं को मुझमें व्यक्त करो|
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मैं तुम्हारे साथ एक हूँ, मैं तुम्हारा पूर्ण पुत्र हूँ, तुम स्वयं को मुझमें व्यक्त कर रहे हो|
हे परम शिव परमात्मा, मेरा आत्मतत्व तुम्हारा मंदिर है, मेरा हृदय तुम्हारा घर है, जहाँ तुम्हारा स्थायी निवास है| अब तुम मुझसे कभी पृथक नहीं हो सकते| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ |

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