Thursday 5 September 2019

प्राण चेतना की एक अनुभूति .....

आज्ञाचक्र से ब्रह्मरंध्र तक जो प्राण चेतना विचरण करती हैं, वे ही मेरे लिये जगन्माता माँ भगवती हैं.
ब्रह्मरंध्र से परे ज्योतिर्मय अनंताकाश परमशिव हैं.
वे परमशिव ही मेरे उपास्य देव हैं.
वे ही सर्वस्व हैं, वे ही गुरु, वे ही विष्णु, वे ही नारायण और वे ही वासुदेव हैं. वे ही एकमात्र लक्ष्य हैं, उनमें स्थिति ही मेरी उपासना है, उनसे सन्मुखता ही आनंद है, और उनसे विमुखता ही परम दुःख है. ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१९

3 comments:

  1. गगन मण्डल में उल्टा कुआँ तहँ अमृत का वासा |
    सगुरा होइ सो भरि भरि पीवै निगुरा जाये प्यासा ||
    .
    गगन-मण्डल में मनुष्य की खोपड़ी के रूप में एक उल्टा कुआं है जिसमें अमृत भरा हुआ है| जिसको उसका रहस्य बताने वाले सद्गुरु मिल गए हैं वह उस अमृत का पान जी भरकर कर रहा है, अन्य सब प्यासे ही हैं|

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  2. उलटा कुआं गगन में तिसमें जरै चिराग |
    तिसमें जरै चिराग बिना रोगन बिन बाती ||
    छह ऋतु बारह मास रहत जरतें दिन राती |
    सतगुरु मिला जो होय ताहि की नजर में आवै ||
    बिन सतगुरु कोउ होर नहीं वाको दर्शावै |
    निकसै एक आवाज चिराग की जोतिन्हि मांही |
    जाय समाधी सुनै और कोउ सुनता नांही ||
    पलटू जो कोई सुनै ताके पूरे भाग |
    उलटा कुआँ गगन मे तिसमें जरै चिराग ||
    .
    संत पलटूदास कहते हैं कि गगन-मण्डल में एक उल्टा कुआं है जो मनुष्य की खोपड़ी ही है| उसमें एक दीपक दिन-रात जलता रहता है| उस दीपक में कोई बत्ती नहीं है, कोई ईंधन नहीं है, पर वह दीपक छओँ ऋतुओं में बारहों महीने जलता रहता रहता है| कोई सद्गुरु ही उसे देखने की विधि बता सकते हैं| उस दीपक की रोशनी में से एक अनाहत नाद की ध्वनि निकलती रहती है| उस ध्वनि को सुनते सुनते समाधि लग जाती है| उस ध्वनि को दूसरा कोई नहीं सुन सकता| जो उस ध्वनि को सुनता है वह पूर्ण परम भाग्यशाली है|

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  3. प्रयासपूर्वक निरंतर सदा हमें अपनी चेतना आज्ञाचक्र से ऊपर ही रखने का अभ्यास करते रहना चाहिए| खाली समय में अजपा-जप का अभ्यास वहीं करें| उपासना के समय नेत्रों के दोनों गोलक बिना किसी तनाव के भ्रूमध्य के समीपतम रहें पर चेतना सहस्त्रार में ही रहे| सहस्त्रार ही गुरु महाराज के चरण-कमल हैं| सहस्त्रार में स्थिति गुरु-चरणों में आश्रय है| सहस्त्रार में ध्यान श्रीगुरु-चरणों का ध्यान है| श्रीगुरु-चरणों का ध्यान पूर्ण प्रेम से करते करते गुरुकृपा से एक न एक दिन परमात्मा की अनुभूति भी हो ही जाएगी|
    ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!

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