Thursday 5 September 2019

हम जले तो सही पर अंधेरे को उजाला न दे सके .....

हम जले तो सही पर अंधेरे को उजाला न दे सके .....
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लगता है यह सांसारिक जीवन एक गफ़लत और दुःस्वप्न ही है| जीवन में सदा गाफ़िल ही रहे| ग़ाफ़िल का अर्थ है .... "असावधान और निश्चेत"| जीवन में सदा असावधान और निश्चेत ही रहे| अपनी गफ़लत को छिपाने के लिए हजारों बहाने ढूँढ़ते रहे, दूसरों पर या तो दोषारोपण करते रहे या उनसे अनुरोध ही करते रह गए पर मिला कुछ भी नहीं| गाफिल होकर यह सोचते सोचते सोते ही रह गए, क़यामत भी कब की निकल गई कि कुछ पता ही नहीं चला .....
"हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
इस राह से निकले तो हमको भी जगा देना ||"
सोते ही रह गए| इतना जीवन काल व्यतीत हो गया कुछ पता ही नहीं चला|


ज़िन्दगी की इस आपाधापी में, कब निकली उम्र मेरी, पता ही नहीं चला| आए थे किस काम को और सोये चादर तान कर, सोते ही रह गए| बाना पहिना सिंह का, चले भेड़ की चाल| भेड़चाल की इस जिंदगी में गाफ़िल ही रहे, कुछ भी नहीं किया| कुछ करने की योग्यता यानि काबिलियत ही नहीं थी| काबिलियत तो उन्हीं में होती है जो कमी न होकर भी कमी खोज कर उसे दूर कर लेते हैं| हम जले तो सही पर अंधेरे को उजाला न दे सके, ऐसी ही थी हमारी क़ाबिलियत और क़िस्मत| जो कुछ भी था वह हमारा नहीं, किसी और का था| सब कुछ उसे ही बापस समर्पित| अब कर भी क्या सकते हैं? कोई पछतावा अब और नहीं है|


"तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌ |
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌ ||"
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
१६ अगस्त २०१९

1 comment:

  1. सायंकाल को एक वृक्ष पर अनेक दिशाओं से आकर अनेक प्रकार के पक्षी एकत्र हो जाते हैं, प्रातः काल होते ही चारों ओर चले जाते हैं| प्राणियों का जो समागम है वह प्याऊ पर इकट्ठे हुए लोगों के समान है| दैवयोग से इकट्ठे हो जाते हैं फिर बिछुड़ भी जाते हैं| रेलगाड़ी में यात्रा करते हैं तब हर बार नए यात्री मिलते हैं|
    जिस प्रकार नदी की धारा आगे ही बढ़ती है पीछे नहीं लौटती, उसी प्रकार आयु घटती ही घटती है बढ़ती नहीं है| संचय के साथ क्षय अवश्य है, जहाँ उत्थान है वहाँ पतन है जहाँ संयोग है वहाँ वियोग है, जहाँ जीवन है वहाँ मरण है|
    आत्मा तो नित्य मुक्त है| पंचभूतों से बनी हुई यह देह कर्मफलानुसार पंचतत्व को प्राप्त हो जाती है|

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