नर्मदा जयंती पर सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ.....
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स्वामी लोकनाथ ब्रह्मचारी और उन्हें नर्मदा तट पर माँ गंगा के दर्शन .....
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आज के युग में यह बात अविश्वसनीय सी लगती है पर यह पूर्ण सत्य है| भारत माँ ने हर युग में महान कालजयी संतों को जन्म दिया है| ऐसे ही एक महातपः सिद्ध ब्रह्मज्ञानी महात्मा थे बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी जिनका जन्म 31 अगस्त 1730 को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बंगाल के चौबीस परगना जिले के कचुआ गाँव में श्री रामनारायण घोषाल और श्रीमती कमला देवी के घर हुआ| उनका नाम रखा गया लोकनाथ घोषाल| उनके पारिवारिक गुरु भगवान गांगुली उन्हें यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात तपस्या कराने के लिए हिमालय क्षेत्र में ले गए| तपस्या पूर्ण होने के पश्चात श्री लोकनाथ घोषाल बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी के नाम से प्रसिद्द हुए| बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी ने 160 वर्ष की आयु में हिमालय में समाधी अवस्था में अपनी शिवदेह का त्याग किया और ब्रह्मलीन हो गये|
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ऐसे जीवनमुक्त शिवदेह प्राप्त महापुरुष ने अपने शिष्यों को बताया था कि एक बार नर्मदा की परिक्रमा करते समय वे नर्मदा तट पर मुंडमहारण्य में निर्जन गंगावाह घाट पर बैठे हुए थे कि एक विचित्र दृश्य देखा| एक काली गाय जिसका शरीर एकदम काला था आई और नर्मदा नदी में स्नान करने उतर गयी| जब वह नहाकर बाहर निकली तो उसका रंग बिलकुल गोरा हो गया और वह गाय बहुत तेजी से उस महारण्य में लुप्त हो गयी|
इसका रहस्य जानने के लिए वे समाधिस्थ हुए और उन्हें बोध हुआ कि वह काली गाय और कोई नहीं साक्षात माँ गंगा थीं जो नर्मदा में स्नान करने आई थीं|
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इसके बारे में एक पौराणिक कथा है जिसमें मार्कन्डेय मुनि कहते हैं कि माँ गंगा ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की और भगवान से निवेदन किया कि हर प्रकार के पापी लोग मुझमें स्नान कर पापमुक्त होते हैं उनके पापविष की ज्वाला में मैं झुलसती रहती हूँ, अतः इस पाप की जलन से मुक्त होने का कोई उपाय मुझे बताइये| भगवान विष्णु ने प्रतिदिन गंगाजी को नर्मदाजल में स्नान कर पापमुक्त होने को कहा|
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नर्मदा रुद्रतेज से उत्पन्न हुई भगवान शिव की मानस कन्या है| भारत की पवित्र नदियों के दो रूप हैं| एक तो उनका भौतिक जलरूप है, दूसरा उनकी सूक्ष्म रूप में एक दैवीय सत्ता है जिसका दर्शन ध्यान में ही होता है|
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इस लेख का उद्देष्य भारत भूमि की महिमा का बर्णन करना था जहाँ पवित्र मोक्षदा नदियाँ, अनेक तपोभूमियाँ, हिमालय और महान संतजन हैं| जय जननी, जय माँ ||
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ॐ नमः शिवाय | हर नर्मदे हर | ॐ ॐ ॐ ||
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स्वामी लोकनाथ ब्रह्मचारी और उन्हें नर्मदा तट पर माँ गंगा के दर्शन .....
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आज के युग में यह बात अविश्वसनीय सी लगती है पर यह पूर्ण सत्य है| भारत माँ ने हर युग में महान कालजयी संतों को जन्म दिया है| ऐसे ही एक महातपः सिद्ध ब्रह्मज्ञानी महात्मा थे बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी जिनका जन्म 31 अगस्त 1730 को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बंगाल के चौबीस परगना जिले के कचुआ गाँव में श्री रामनारायण घोषाल और श्रीमती कमला देवी के घर हुआ| उनका नाम रखा गया लोकनाथ घोषाल| उनके पारिवारिक गुरु भगवान गांगुली उन्हें यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात तपस्या कराने के लिए हिमालय क्षेत्र में ले गए| तपस्या पूर्ण होने के पश्चात श्री लोकनाथ घोषाल बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी के नाम से प्रसिद्द हुए| बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी ने 160 वर्ष की आयु में हिमालय में समाधी अवस्था में अपनी शिवदेह का त्याग किया और ब्रह्मलीन हो गये|
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ऐसे जीवनमुक्त शिवदेह प्राप्त महापुरुष ने अपने शिष्यों को बताया था कि एक बार नर्मदा की परिक्रमा करते समय वे नर्मदा तट पर मुंडमहारण्य में निर्जन गंगावाह घाट पर बैठे हुए थे कि एक विचित्र दृश्य देखा| एक काली गाय जिसका शरीर एकदम काला था आई और नर्मदा नदी में स्नान करने उतर गयी| जब वह नहाकर बाहर निकली तो उसका रंग बिलकुल गोरा हो गया और वह गाय बहुत तेजी से उस महारण्य में लुप्त हो गयी|
इसका रहस्य जानने के लिए वे समाधिस्थ हुए और उन्हें बोध हुआ कि वह काली गाय और कोई नहीं साक्षात माँ गंगा थीं जो नर्मदा में स्नान करने आई थीं|
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इसके बारे में एक पौराणिक कथा है जिसमें मार्कन्डेय मुनि कहते हैं कि माँ गंगा ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की और भगवान से निवेदन किया कि हर प्रकार के पापी लोग मुझमें स्नान कर पापमुक्त होते हैं उनके पापविष की ज्वाला में मैं झुलसती रहती हूँ, अतः इस पाप की जलन से मुक्त होने का कोई उपाय मुझे बताइये| भगवान विष्णु ने प्रतिदिन गंगाजी को नर्मदाजल में स्नान कर पापमुक्त होने को कहा|
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नर्मदा रुद्रतेज से उत्पन्न हुई भगवान शिव की मानस कन्या है| भारत की पवित्र नदियों के दो रूप हैं| एक तो उनका भौतिक जलरूप है, दूसरा उनकी सूक्ष्म रूप में एक दैवीय सत्ता है जिसका दर्शन ध्यान में ही होता है|
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इस लेख का उद्देष्य भारत भूमि की महिमा का बर्णन करना था जहाँ पवित्र मोक्षदा नदियाँ, अनेक तपोभूमियाँ, हिमालय और महान संतजन हैं| जय जननी, जय माँ ||
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ॐ नमः शिवाय | हर नर्मदे हर | ॐ ॐ ॐ ||
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