प्रिय निजात्मगण, सप्रेम सादर नमन!
आप सब मेरी ही निजात्मा हो, आपका ह्रदय भी मेरा ही ह्रदय है| आप में और मुझ में कोई भेद नहीं है|
जब प्रभु साक्षात् हमारे समक्ष प्रकट हैं और हमारा समर्पण बिना किसी शर्त के स्वीकार कर रहे हैं तो उन्हीं में पूर्णतः समर्पित हो जाने के अतिरिक्त हमें और क्या चाहिए ? ........ कुछ भी नहीं|
यह जीवन धन्य और कृतार्थ हुआ|
सारी साधनाओं का, सारी भक्ति का और सारे शास्त्रों का सार है..... शरणागति द्वारा समर्पण| यही सनातन धर्म है|
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भगवान यहीं है, इसी समय हैं और सर्वदा हैं| वे ही हमारे ह्रदय में धड़क रहे हैं, फेफड़ों से सांस ले रहे हैं, आँखों से देख रहे हैं, कानों से सुन रहे हैं, पैरों से चल रहे हैं और दिमाग में सोच रहे हैं| वे निकटतम से भी निकट हैं| अब और कुछ भी नहीं चाहिए| सब कुछ तो मिल गया है| भगवान स्वयं ही चल कर आ गए हैं, अतः अब कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है| जन्म से अब तक वे ही माता-पिता भाई-बहिन, सम्बन्धियों व शत्रु-मित्रों के रूप में आये और वे ही सर्वस्व हैं|
वे ही "मैं" बन गए हैं, यह "मैं", "मेरापन", "तूँ", और "तेरापन" सब कुछ वे ही हैं|
यह व्यष्टि भी वे हैं और समष्टि भी वे ही हैं|
कुछ भी अपने लिए नहीं बचाकर रखना है, सब कुछ उनको समर्पित है| वे ही वे हैं, मैं नहीं और मेरा कुछ भी नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
आप सब मेरी ही निजात्मा हो, आपका ह्रदय भी मेरा ही ह्रदय है| आप में और मुझ में कोई भेद नहीं है|
जब प्रभु साक्षात् हमारे समक्ष प्रकट हैं और हमारा समर्पण बिना किसी शर्त के स्वीकार कर रहे हैं तो उन्हीं में पूर्णतः समर्पित हो जाने के अतिरिक्त हमें और क्या चाहिए ? ........ कुछ भी नहीं|
यह जीवन धन्य और कृतार्थ हुआ|
सारी साधनाओं का, सारी भक्ति का और सारे शास्त्रों का सार है..... शरणागति द्वारा समर्पण| यही सनातन धर्म है|
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भगवान यहीं है, इसी समय हैं और सर्वदा हैं| वे ही हमारे ह्रदय में धड़क रहे हैं, फेफड़ों से सांस ले रहे हैं, आँखों से देख रहे हैं, कानों से सुन रहे हैं, पैरों से चल रहे हैं और दिमाग में सोच रहे हैं| वे निकटतम से भी निकट हैं| अब और कुछ भी नहीं चाहिए| सब कुछ तो मिल गया है| भगवान स्वयं ही चल कर आ गए हैं, अतः अब कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है| जन्म से अब तक वे ही माता-पिता भाई-बहिन, सम्बन्धियों व शत्रु-मित्रों के रूप में आये और वे ही सर्वस्व हैं|
वे ही "मैं" बन गए हैं, यह "मैं", "मेरापन", "तूँ", और "तेरापन" सब कुछ वे ही हैं|
यह व्यष्टि भी वे हैं और समष्टि भी वे ही हैं|
कुछ भी अपने लिए नहीं बचाकर रखना है, सब कुछ उनको समर्पित है| वे ही वे हैं, मैं नहीं और मेरा कुछ भी नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव शिव शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
>>> इस जीवन में वो ही समय सार्थक है जो प्रभु के ध्यान में व्यतीत होता है, बाकी सब मरुभूमि में गिरी जल की कुछ बूंदों की तरह है| जीवन की सार्थकता प्रभु की शरणागति और समर्पण में है| प्रभु को अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम दो| भगवान् से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत माँगो|<<<
ReplyDeleteॐ ॐ ॐ ||