"मैं कौन हूँ?" .....
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इस विषय पर बड़े बड़े दर्शन शास्त्र हैं, बड़े बड़े महान मनीषियों ने अपने महान विचार व्यक्त किये हैं| इस बारे में मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं, किसी भी तरह का कोई भ्रम या संदेह नहीं है| सोचने के दो स्तर हैं मेरे मेरे लिए ..... एक तो भौतिक है, और दूसरा आध्यात्मिक है|
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> चाहे मैं यह शरीर महाराज नही हूँ, पर मेरी हर अभिव्यक्ति इस शरीर महाराज के माध्यम से ही है| लोग मुझे इस शरीर महाराज के नाम कृपा शंकर के रूप में ही जानते हैं| यह सत्य मैं झुठला नहीं सकता| भौतिक स्तर पर मैं एक सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक यानि Retired Senior Citizen हूँ और कुछ भी नहीं| मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग हैं, उनकी भीड़ में मैं भी एक अकिंचन और महत्वहीन हूँ| घर-परिवार वालों के लिए वास्तव में मैं एक रुपया-पैसा कमाने की मशीन ही था, जो उनका भावनात्मक व सामाजिक सहारा बना| इस जीवन में मैनें भगवान का भजन तो नहीं किया पर सांसारिक घर-परिवार के लिए रुपया-पैसा कमाने हेतु मशीन की तरह दिन-रात एक कर के दुनियाँ के हर कोने की धूल छानी है| फिर भी आत्म-संतुष्टि के सिवा अन्य कुछ भी नहीं मिला है, दूसरे शब्दों में .... 'न माया मिली न राम'|
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> आध्यात्मिक स्तर पर मैं परमात्मा के विराट अनंत महासागर की एक लहर के एक जल बिंदु का एक अकिंचन कण मात्र हूँ| महासागर में अनंत असंख्य लहरें उठती हैं और उसी में विलीन हो जाती हैं| एक लहर में भी असंख्य जल की बूँदें होती हैं| जल की एक एक बूँद के भी अनेक कण होते हैं| पर कभी कभी भूले से जल की बूँद का कोई कण स्वयं उस महासागर में विलीन होकर उसके साथ एक होने की चाह कर बैठता है ........ बस वो ही एक कण मात्र हूँ जिसके पीछे अनंत महासागर है| वह कण ही महासागर है| अन्य मैं कुछ भी नहीं हूँ|
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सांसारिक समाज के लिए मैं असंगत यानि Misfit हूँ .....
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समाज में जहाँ भी जाता हूँ लोग प्रायः इस चार विषयों पर ही बात करते हैं --- राजनीतिक आलोचना (परनिंदा), रुपया-पैसा, सेक्स और तथाकथित समाज सेवा| इसके अतिरिक्त अन्य कोई चर्चा न तो प्रायः वे पसंद करते हैं और न करते हैं| पर मैं ऐसा नहीं कर पाता अतः उनके लिए misfit हूँ|
समाज में अधिकाँश लोग अपने मनोरंजन के लिए या तो सिनेमा नाटक आदि देखते हैं, या शराब पीते हैं या गपशप करते हैं, ताश पत्ते आदि खेलते हैं या घूमने फिरने चले जाते हैं| पर मेरी इनमें से किसी में भी रूचि नहीं है| अतः मैं उन के समाज के लिए फिर misfit हूँ|
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भगवान का नाम लेने का एक लाभ .....
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भगवान का नाम लेने का एक बहुत बड़ा लाभ तो यह है कि कोई मेरा समय खराब नहीं करता और परेशान भी नहीं करता| कोई गपशप करने आता है तो मैं उससे हरिचर्चा छेड़ देता हूँ, फिर वह दुबारा लौटकर बापस नहीं आता| हर कोई मुझ से मिलना भी नहीं चाहता क्योंकि कोई बोर नहीं होना चाहता| मुझ से वे ही लोग मिलते हैं जिनको परमात्मा से प्रेम है| अन्य कोई मुझसे नहीं मिलता| वे ही लोग मुझे बुलाते हैं| अन्य कहीं मैं जाता भी नहीं हूँ| इस तरह के लोग ही मेरे मित्र हैं|
मेरा मनोरंजन .... परमात्मा का चिंतन और ध्यान है| बातें भी उसी की करता हूँ| लघु लेख भी मैं हिन्दू राष्ट्रवाद और प्रभु प्रेम पर ही लिखता हूँ| इससे मुझे बहुत लाभ हैं|
भगवान् ने सब कुछ दे रखा है, किसी के आगे आज तक न तो हाथ फैलाया है और न फैलाऊँगा| मेरे लिए किसी से कुछ माँगने से मरना भला है| मेरे अंतर में जो परमात्मा हैं, उन्हें मेरी हर आवश्यकता का पता है और वे ही मेरे योग-क्षेम का वहन करते हैं| मुझे परमात्मा में ही खूब आनंद आता है और मैं अपने जीवन में पूर्ण रूप से प्रसन्न और संतुष्ट हूँ|
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हे हरि, तुम कितने सुन्दर हो! पर्वतों में तुम कितने उन्नत हो, वनों में तुम हरे-भरे हो, मरुभूमि की शुष्कता हो, एकांत की नीरवता हो, नदियों की चंचलता हो, महासागर की गंभीरता हो, और मेरे अंतर का आनंद हो| तुम से अब पृथक हो ही नहीं सकता| मेरे ह्रदय का साम्राज्य अब तुम्हारा ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
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पुनश्चः .....
अयमात्मा ब्रह्म | आत्मा नित्य मुक्त है, सारे बंधन एक भ्रम मात्र हैं, उठो और अपने ब्रह्मत्व को व्यक्त करो| यह सारा जगत सृष्टिकर्ता के मन का एक संकल्प मात्र है, यहाँ कुछ भी अनुपयोगी नहीं है, पर सृष्टि के रहस्यों को समझना बड़ा कठिन है| कोई छोटा बड़ा नहीं है, सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हैं| "मैं" भी परमात्मा की ही अभिव्यक्ति हूँ| ॐ ॐ ॐ ||
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इस विषय पर बड़े बड़े दर्शन शास्त्र हैं, बड़े बड़े महान मनीषियों ने अपने महान विचार व्यक्त किये हैं| इस बारे में मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं, किसी भी तरह का कोई भ्रम या संदेह नहीं है| सोचने के दो स्तर हैं मेरे मेरे लिए ..... एक तो भौतिक है, और दूसरा आध्यात्मिक है|
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> चाहे मैं यह शरीर महाराज नही हूँ, पर मेरी हर अभिव्यक्ति इस शरीर महाराज के माध्यम से ही है| लोग मुझे इस शरीर महाराज के नाम कृपा शंकर के रूप में ही जानते हैं| यह सत्य मैं झुठला नहीं सकता| भौतिक स्तर पर मैं एक सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक यानि Retired Senior Citizen हूँ और कुछ भी नहीं| मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग हैं, उनकी भीड़ में मैं भी एक अकिंचन और महत्वहीन हूँ| घर-परिवार वालों के लिए वास्तव में मैं एक रुपया-पैसा कमाने की मशीन ही था, जो उनका भावनात्मक व सामाजिक सहारा बना| इस जीवन में मैनें भगवान का भजन तो नहीं किया पर सांसारिक घर-परिवार के लिए रुपया-पैसा कमाने हेतु मशीन की तरह दिन-रात एक कर के दुनियाँ के हर कोने की धूल छानी है| फिर भी आत्म-संतुष्टि के सिवा अन्य कुछ भी नहीं मिला है, दूसरे शब्दों में .... 'न माया मिली न राम'|
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> आध्यात्मिक स्तर पर मैं परमात्मा के विराट अनंत महासागर की एक लहर के एक जल बिंदु का एक अकिंचन कण मात्र हूँ| महासागर में अनंत असंख्य लहरें उठती हैं और उसी में विलीन हो जाती हैं| एक लहर में भी असंख्य जल की बूँदें होती हैं| जल की एक एक बूँद के भी अनेक कण होते हैं| पर कभी कभी भूले से जल की बूँद का कोई कण स्वयं उस महासागर में विलीन होकर उसके साथ एक होने की चाह कर बैठता है ........ बस वो ही एक कण मात्र हूँ जिसके पीछे अनंत महासागर है| वह कण ही महासागर है| अन्य मैं कुछ भी नहीं हूँ|
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सांसारिक समाज के लिए मैं असंगत यानि Misfit हूँ .....
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समाज में जहाँ भी जाता हूँ लोग प्रायः इस चार विषयों पर ही बात करते हैं --- राजनीतिक आलोचना (परनिंदा), रुपया-पैसा, सेक्स और तथाकथित समाज सेवा| इसके अतिरिक्त अन्य कोई चर्चा न तो प्रायः वे पसंद करते हैं और न करते हैं| पर मैं ऐसा नहीं कर पाता अतः उनके लिए misfit हूँ|
समाज में अधिकाँश लोग अपने मनोरंजन के लिए या तो सिनेमा नाटक आदि देखते हैं, या शराब पीते हैं या गपशप करते हैं, ताश पत्ते आदि खेलते हैं या घूमने फिरने चले जाते हैं| पर मेरी इनमें से किसी में भी रूचि नहीं है| अतः मैं उन के समाज के लिए फिर misfit हूँ|
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भगवान का नाम लेने का एक लाभ .....
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भगवान का नाम लेने का एक बहुत बड़ा लाभ तो यह है कि कोई मेरा समय खराब नहीं करता और परेशान भी नहीं करता| कोई गपशप करने आता है तो मैं उससे हरिचर्चा छेड़ देता हूँ, फिर वह दुबारा लौटकर बापस नहीं आता| हर कोई मुझ से मिलना भी नहीं चाहता क्योंकि कोई बोर नहीं होना चाहता| मुझ से वे ही लोग मिलते हैं जिनको परमात्मा से प्रेम है| अन्य कोई मुझसे नहीं मिलता| वे ही लोग मुझे बुलाते हैं| अन्य कहीं मैं जाता भी नहीं हूँ| इस तरह के लोग ही मेरे मित्र हैं|
मेरा मनोरंजन .... परमात्मा का चिंतन और ध्यान है| बातें भी उसी की करता हूँ| लघु लेख भी मैं हिन्दू राष्ट्रवाद और प्रभु प्रेम पर ही लिखता हूँ| इससे मुझे बहुत लाभ हैं|
भगवान् ने सब कुछ दे रखा है, किसी के आगे आज तक न तो हाथ फैलाया है और न फैलाऊँगा| मेरे लिए किसी से कुछ माँगने से मरना भला है| मेरे अंतर में जो परमात्मा हैं, उन्हें मेरी हर आवश्यकता का पता है और वे ही मेरे योग-क्षेम का वहन करते हैं| मुझे परमात्मा में ही खूब आनंद आता है और मैं अपने जीवन में पूर्ण रूप से प्रसन्न और संतुष्ट हूँ|
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हे हरि, तुम कितने सुन्दर हो! पर्वतों में तुम कितने उन्नत हो, वनों में तुम हरे-भरे हो, मरुभूमि की शुष्कता हो, एकांत की नीरवता हो, नदियों की चंचलता हो, महासागर की गंभीरता हो, और मेरे अंतर का आनंद हो| तुम से अब पृथक हो ही नहीं सकता| मेरे ह्रदय का साम्राज्य अब तुम्हारा ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
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पुनश्चः .....
अयमात्मा ब्रह्म | आत्मा नित्य मुक्त है, सारे बंधन एक भ्रम मात्र हैं, उठो और अपने ब्रह्मत्व को व्यक्त करो| यह सारा जगत सृष्टिकर्ता के मन का एक संकल्प मात्र है, यहाँ कुछ भी अनुपयोगी नहीं है, पर सृष्टि के रहस्यों को समझना बड़ा कठिन है| कोई छोटा बड़ा नहीं है, सब परमात्मा की अभिव्यक्तियाँ हैं| "मैं" भी परमात्मा की ही अभिव्यक्ति हूँ| ॐ ॐ ॐ ||
यह शरीर महाराज भी परमात्मा की एक सृष्टि है जो हमें इस लोकयात्रा के लिए मिला है| उसके बिना हमारी यात्रा पूरी नहीं होगी| अतः इस शरीर महाराज से भी प्रेम करो और इसकी भी ठीक से देखभाल करो|
ReplyDeleteइसके बिना कोई भी साधना/उपासना/जप-तप कुछ भी नहीं होगा| इस सृष्टि में हमारी पहिचान इस शरीर महाराज से ही है| इसके सिवा हमारे पास अन्य कोई साधन नहीं है|
ॐ ॐ ॐ ||