Friday 8 September 2017

अंग्रेजी तिथि से मेरा जन्म दिवस ......

अंग्रेजी तिथि से मेरा जन्मदिवस .....
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 ग्रेगोरियन पंचांग के अनुसार आज ३ सितम्बर २०१७ को यह देह रूपी वाहन ६९ वर्ष पुराना हो गया है | इस देहरूपी वाहन पर ही यह लोकयात्रा चल रही है |
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रामचरितमानस के उत्तरकांड में भगवान श्रीराम ने इस देह को भव सागर से तारने वाला जलयान, सदगुरु को कर्णधार यानि खेने वाला, और अनुकूल वायु को स्वयं का अनुग्रह बताया है | यह भी कहा है कि जो मनुष्य ऐसे साधन को पा कर भी भवसागर से न तरे वह कृतघ्न, मंदबुद्धि और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है |
"नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो | सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ||
करनधार सदगुरु दृढ़ नावा | दुर्लभ साज सुलभ करि पावा || ४३.४ ||

( यह मनुष्य का शरीर भवसागर [से तारने] के लिये (जहाज) है | मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है | सदगुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेनेवाले) हैं | इस प्रकार दुर्लभ (कठिनतासे मिलनेवाले) साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपासे सहज ही) उसे प्राप्त हो गये हैं | )
जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ |
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ||४४||
( जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतध्न और मन्द-बुद्धि है और आत्महत्या करनेवाले की गति को प्राप्त होता है | )
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अतः भवसागर को पार करना और इस साधन का सदुपयोग करना भगवान श्रीराम का आदेश है | मुझे बहुत बड़ी संख्या में शुभ कामना सन्देश मिले हैं | मैं उन सभी का उत्तर इस प्रस्तुति द्वारा दे रहा हूँ |
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आप सब को सादर साभार नमन | आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हैं | सब का कल्याण हो | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०३ सितम्बर २०१७.
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मेरी आयु एक ही है, और वह है ... "अनंतता" .....
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जिस मानव देहरूपी नौका पर मैं इस जीवन-मृत्यु रूपी भव सागर को पार कर रहा हूँ, ..... वह नौका, उसके कर्णधार सद् गुरू, अनुकूल वायुरूप परमात्मा, और यह भवसागर ..... सब एक ही हैं | "उनके" सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है | वास्तव में मैं यह देह नहीं अपितु अनंत शाश्वत चैतन्य हूँ | मेरी आयु एक ही है, और वह है ..... अनन्तता | परम प्रेम मेरा स्वभाव है | यह पृथकता का बोध ही माया है जो सत्य नहीं है | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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My age is infinity, so it is only one. This bodily boat on which I am sailing across the ocean of life and death, the helmsman .... my guru, favorable wind .... the Divine, and I, are all one. There is no separation. The feeling of separation is false. Om Thou art That. Om Om Om .

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