Tuesday 16 October 2018

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....

एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग का नाम "इंदिरा पॉइंट" है| यह नाम स्वयं इंदिरा गाँधी ने दिया था| इस से पूर्व इस स्थान का नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यह बहुत सुन्दर एक छोटा सा गाँव है| नौसेना, वायुसेना व कुछ अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी भी यहाँ रहते हैं| यहाँ के प्रकाश-स्तम्भ पर चढ़ कर बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं| मैं सन २००१ में वहाँ गया था| बाद में २००४ में आई सुनामी में यह प्रकाश स्तम्भ थोड़ा सा हटकर पानी से घिर गया था| इस सुनामी में यहाँ के २० परिवार, चार वैज्ञानिक और बहुत सारे सरकारी कर्मचारी मारे गए थे| यहाँ जाने के लिए विशेष सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है जो आसानी से मिल जाती है|
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यहाँ के जंगलों में मैनें एक विशेष अति सुन्दर चिड़िया की तरह के पक्षी देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिये| ऐसे ही एक विशेष शक्ल के बन्दर देखे जो अन्यत्र कहीं भी नहीं दिखाई दिए| एक समुद्र तट यहाँ है जिस की रेत में अंडे देने के लिए कछुए ऑस्ट्रेलिया तक से आते हैं| यह स्थान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर निकोबार तहसील की लक्ष्मी नगर पंचायत में है|
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ग्रेट निकोबार द्वीप पर सबसे बड़ा स्थान "कैम्पवेल वे" है जो अच्छी बसावट वाला छोटा सा नगर है| सारी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं| यहाँ तमिलनाडू से आकर बहुत लोग बसे हैं जो सब हिंदी बोलते हैं| यहाँ के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं जहाँ प्रातःकाल में घूमने का बड़ा ही आनंद आता है| दो-तीन हिन्दू मंदिर और एक चर्च भी यहाँ है| कैम्पवेल वे नगर में आने के लिए पोर्ट ब्लेयर से पवनहंस हेलिकोप्टर सेवा है| सप्ताह में एक दिन एक यात्री जलयान भी पोर्ट ब्लेयर से यहाँ आता है| यहाँ रुद्राक्ष के पेड़ बहुत हैं और रुद्राक्ष खूब मिलता है| अब तो व्यवसायिक रूप से यहाँ ताड़ के पेड़ और जायफल/जावित्री के पौधे भी खूब बड़े स्तर पर लगाए गए हैं| यहाँ के शास्त्री नगर से इंदिरा पॉइंट की दूरी २१ किलोमीटर है जो सड़क से जुड़ा हुआ है| मार्ग में गलाथिया नाम की एक नदी भी आती है जिस पर पुल बना हुआ है|
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यहाँ से सिर्फ १६३ किलोमीटर दक्षिण में इंडोनेशिया में सुमात्रा का सबांग जिला है जहाँ भारत के सहयोग से एक नौसैनिक अड्डा बनाए जाने की योजना है, जो लीज पर भारत के आधीन रहेगा| मैं अंडमान-निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ जिनमें से कुछ तो अविस्मरणीय हैं|
कृपा शंकर
१४ अक्टूबर २०१८

1 comment:

  1. श्री अरुण उपाध्याय की टिप्पणी :--
    १९९१ में परिवार सहित अण्डमान गया था। पोर्ट ब्लेयर से ८ दिन की यात्रा में ग्रेट निकोबार तक गया और रास्ते के सभी मुख्य द्वीपों की यात्रा की। कार निकोबार वहां के जिलाधिकारी की जीप से पूरा घूमा। वहां वही भोजन मिला जो इस जहाज से गया था। इन्दिरा प्वाइंट तक जाने का समय नहीं मिला। वहां १००० वर्ष पूर्व राजेन्द्र चोल ने रुद्राक्ष के पेड़ लगाये थे जिनमें ५०० अभी भी जीवित हैं। इन वृक्षों की आयु २००० वर्ष या अधिक होती है तथा आयु की गणना की जा सकती है। राजेन्द्र चोल १०१५ में केरल से १०,००० सैनिकों के साथ जहाज से जगन्नाथ पुरी आये थे दर्शन के बाद गंगा नदी के रास्ते भागल पुर तक गये। वहां से स्थल मार्ग द्वारा पशुपतिनाथ गये और वहां से रुद्राक्ष के बीज ले कर ग्रेट निकोबार तक गये। वियतनाम तथा इण्डोनेसिया के भी कुछ बागों पर उनका शासन था। रुद्राक्ष वन के अधिकारी ने यह कहानी सुनाई थी तथा कुछ रुद्राक्ष दिये थे।

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