माँ भगवती का स्थूल और सूक्ष्म रूप .....
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माँ भगवती के स्थूल और सूक्ष्म रूपों के बारे में बौद्धिक रूप से तो कुछ भी कह पाने में मैं असमर्थ हूँ, पर अपनी अनुभूतियों/ भावनाओं को तो व्यक्त कर ही सकता हूँ| वैसे तो सारी सृष्टि ही माँ भगवती का स्थूल रूप है, पर मेरी दृष्टी में हम जो साँस लेते और छोड़ते हैं, वह माँ भगवती का स्थूल रूप है| स्थूल रूप से श्वास-प्रश्वास के रूप में माँ अपनी उपस्थिति का आभास कराती हैं| श्वास-प्रश्वास के रूप में योग साधक "हं" और "सः" बीज मन्त्रों के साथ जो अजपा-जप करते हैं वह स्थूल रूप से माँ भगवती की ही साधना है|
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दीर्घ ध्यान साधना के पश्चात् हमें सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में प्रचलित हो रहे प्राण तत्व की अनुभूति होती है| धीरे धीरे कूटस्थ में विस्तार रूप में महाप्राण की परम आनंददायक अनुभूति होने लगती है| वहाँ स्वतः ही नाद और ज्योति के रूप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का अनंत विस्तारमय ध्यान होने लगता है| वह विस्तार ही परमशिव हैं, जो हमारा वास्तविक सही रूप है| वह महाप्राण ही माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है जिसमें समस्त सृष्टि समाहित है|
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मैंने आत्मप्रेरणावश जो कुछ भी लिखा है, वह मेरी अनुभूति है| किसी भी बौद्धिक प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकूंगा| सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अक्टूबर २०१८
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पुनश्चः :--
पंचप्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं| ये पंचप्राण ही गणेश जी के गण हैं जिनके वे ओंकार रूप में गणपति हैं| प्राणतत्व माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है| विस्तृत महाप्राण के रूप में भगवान परमशिव व्यक्त हैं| प्राणतत्व की साधना से सारी साधनाएँ संपन्न हो जाती हैं| सारी सृष्टि ही प्राणमय है| ॐ ॐ ॐ !!
१३ अक्तूबर २०१८
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माँ भगवती के स्थूल और सूक्ष्म रूपों के बारे में बौद्धिक रूप से तो कुछ भी कह पाने में मैं असमर्थ हूँ, पर अपनी अनुभूतियों/ भावनाओं को तो व्यक्त कर ही सकता हूँ| वैसे तो सारी सृष्टि ही माँ भगवती का स्थूल रूप है, पर मेरी दृष्टी में हम जो साँस लेते और छोड़ते हैं, वह माँ भगवती का स्थूल रूप है| स्थूल रूप से श्वास-प्रश्वास के रूप में माँ अपनी उपस्थिति का आभास कराती हैं| श्वास-प्रश्वास के रूप में योग साधक "हं" और "सः" बीज मन्त्रों के साथ जो अजपा-जप करते हैं वह स्थूल रूप से माँ भगवती की ही साधना है|
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दीर्घ ध्यान साधना के पश्चात् हमें सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में प्रचलित हो रहे प्राण तत्व की अनुभूति होती है| धीरे धीरे कूटस्थ में विस्तार रूप में महाप्राण की परम आनंददायक अनुभूति होने लगती है| वहाँ स्वतः ही नाद और ज्योति के रूप में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का अनंत विस्तारमय ध्यान होने लगता है| वह विस्तार ही परमशिव हैं, जो हमारा वास्तविक सही रूप है| वह महाप्राण ही माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है जिसमें समस्त सृष्टि समाहित है|
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मैंने आत्मप्रेरणावश जो कुछ भी लिखा है, वह मेरी अनुभूति है| किसी भी बौद्धिक प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकूंगा| सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अक्टूबर २०१८
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पुनश्चः :--
पंचप्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं| ये पंचप्राण ही गणेश जी के गण हैं जिनके वे ओंकार रूप में गणपति हैं| प्राणतत्व माँ भगवती का सूक्ष्म रूप है| विस्तृत महाप्राण के रूप में भगवान परमशिव व्यक्त हैं| प्राणतत्व की साधना से सारी साधनाएँ संपन्न हो जाती हैं| सारी सृष्टि ही प्राणमय है| ॐ ॐ ॐ !!
१३ अक्तूबर २०१८
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