Sunday, 25 August 2024

एक परम गोपनीय सत्य --- .

भगवान की प्राप्ति एक सरल से सरल कार्य है। इससे अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है। इस अति अति गोपनीय रहस्यों के रहस्य को जनहित में बता देना ही उचित है। भगवान की कृपा को प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें सिर्फ सत्यनिष्ठा और परमप्रेम ही चाहिए। अन्य सारे गुण अपने आप ही खींचे चले आते हैं। भगवान सत्य-नारायण हैं, वे सत्य-नारायण की कथा से नहीं, हमारे स्वयं के सत्यनिष्ठ बनने से ही प्राप्त होते हैं। हमें स्वयं को ही सत्य-नारायण बनना होगा।

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किसी भी तरह का कोई असत्य, छल-कपट हमारे जीवन में नहीं होना चाहिए। भगवान की प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक हमारा लोभ और अहंकार है। किसी भी तरह की कोई कामना या आकांक्षा हमारे हृदय में नहीं हो, केवल अभीप्सा हो। अभीप्सा कहते हैं एक अतृप्त गहन प्यास और तड़प को। "भगवान हर समय हमारे साथ हैं", वे कहीं दूर नहीं, हर समय निरंतर हमारे आज्ञा-चक्र में हैं। एक साधक का आज्ञाचक्र ही उसका हृदय है। आज्ञाचक्र के बिलकुल सामने भ्रूमध्य है। गुरु की आज्ञा से हम भ्रूमध्य में ध्यान करते हैं। इसका परिणाम अपने अनुभव से ही प्राप्त करें। भगवान की प्राप्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भावना हृदय में नहीं होनी चाहिए। यदि हमारे में सत्यनिष्ठा नहीं है तो हमारी कोई भी प्रार्थना कभी भी नहीं सुनी जाएगी। हर समय निरंतर यह भाव रहे कि हम भगवान में, और भगवान हमारे में हैं।
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मैं साकार उपासक हूँ। साकार से ही निराकार में प्रवेश किया जा सकता है। निराकार का अर्थ है -- सारे आकार जिसके हों। इससे अतिरिक्त कुछ भी निराकार नहीं है सम्पूर्ण सृष्टि में। हमारी मनुष्य देह भगवान का मंदिर है। हमारा मेरु-दण्ड भगवान की वेदी है। भगवान शिव हमारे गुरु हैं। उनका ध्यान आज्ञाचक्र में कीजिये। जैसे जैसे आपको सिद्धि प्राप्त होगी, उनका स्थान शनैः शनैः बदल जाएगा। यह बहुत बाद की बात है। वे सर्वव्यापी हैं।
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साथ साथ आरंभ में मूलाधारचक्र में गणपति का ध्यान उनके मंत्र से कीजिये। यदि सत्यनिष्ठा होगी तो उनका मंत्र उनकी कृपा से अपने आप ही प्राप्त हो जायेगा। मूलाधारचक्र के त्रिभुज में एक शिवलिंग है, जिसके चारों ओर एक शक्ति लिपटी हुई है। जब तक आपकी सांसें चल रही हैं, आप को वहाँ आकर उनको नमन करना ही होगा। उस शक्ति के बीजमंत्र भी उस त्रिभुज के तीनों ओर लिखे हुए हैं।
मैंने जो कहा है यह बड़े रहस्य की बात है। जो भगवान की कृपा से ही समझ में आएगी। सर्वव्यापी शिव को मैं परमशिव कहता हूँ। यह एक अनुभूति है। जो कुछ भी मैंने लिखा है यह अनुभूत सत्य है। इसकी अनुभूति प्रत्येक जीवात्मा को करनी होगी।
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मेरे पास समय नहीं है। जो समय भगवान ने दिया है वह उनका है, मेरा नहीं। मैं किसी के लिए भी उपलब्ध नहीं हूँ। अतः मेरे से संपर्क साधने का प्रयास न करें। यदि संपर्क ही करना है तो भगवान से करें, वे निरंतर हर समय उपलब्ध हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अगस्त २०२४

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