(उत्तर) : बंधन में डालने वाली बहुत सी चीजें हैं, लेकिन उनमें से मुख्य है -- हमारा अहङ्कार। जब तक स्वयं को हम यह भौतिक शरीर मानते हैं तब तक हम बंधन में हैं। साधना द्वारा जब हमारी चेतना ब्रह्ममय हो जाती है, तब हम मुक्त हैं। वास्तव में ब्रह्म ही हमारा अस्तित्व है। जब तक पराविद्या की प्राप्ति नहीं होती तब तक सारे बन्धनों का कारण यह अहङ्कार है। इसलिये अहङ्कार ही बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है।
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आज की अधिकांश संतति कामज है, धर्मज नहीं। काम-वासना से जन्य संतति काम-वासना की ओर ही दौड़ेगी। कामज-संतति द्वारा प्रश्न यह होता है कि "क्या करने से हम को मजा आयेगा?"
धर्मज-संतति के मन में ही यह प्रश्न आ सकता है कि "मेरा कर्तव्य क्या है?" और "मुझे क्या करना चाहिये?"
साधना द्वारा चेतना का रूपान्तरण हो सकता है। लेकिन यह भगवान की असीम कृपा से ही होता है। अभी उचित वातावरण नहीं है। अतः इस विषय की और अधिक चर्चा नहीं की जा सकती।
अभी तो प्रश्न यही है कि बंधनों से मुक्त कैसे हों? इसके लिए उपासना/साधना करनी होगी।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२३ अगस्त २०२४
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