अब तक की सारी सरकारी गलत शिक्षा नीतियों और गलत संवैधानिक नियमों ने पूरे हिन्दू समाज को वैदिक शिक्षा से वंचित रखा है। इस कारण विदेशी फिरंगी संस्कृति हम सब पर हावी हो गई है, और हम अपनी प्राचीन परंपराओं को भूल गए हैं। स्थिति इतनी अधिक खराब है कि ईश्वर ही हमारा उद्धार कर सकते हैं।
वेदांगों और वेदों का स्वाध्याय, चिंतन, मनन और आचरण नहीं होने से हमारी आध्यात्मिक उन्नति ठप्प हो गई है। हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति करें, यही श्रावणी-पर्व जिसे हम रक्षा-बंधन कहते हैं का प्रयोजन है। इस समय तो हमें केवल भगवान का ही सहारा है, और हमारा कोई नहीं है। हम भगवान को न भूलें। अपनी पीड़ा ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
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राष्ट्र और धर्म की रक्षा स्वयं भगवान कर रहे हैं, और वे ही करेंगे। हम तो निमित्त मात्र ही हो सकते हैं। लेकिन जब राष्ट्र और धर्म की रक्षा का संकल्प ले ही लिया है, तो अपने समर्पण, भक्ति और साधना में और अधिक दृढ़ता लायेंगे। हमारी एकमात्र पूँजी और संपत्ति स्वयं परमात्मा हैं, उन से अधिक और कुछ भी हमारे पास नहीं है। अब राष्ट्र का निर्माण स्वयं भगवान करेंगे।
पवित्र श्रावण मास के अंतिम सोमवार को आप में, भगवान परमशिव को नमन करता हूँ। आज श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन भी था। इन उत्सवों का प्रयोजन -- "आध्यात्मिक उन्नति" है। वैदिक और पौराणिक जो भी साधना आप करते हैं, वह पूर्ण निष्ठा से करें।
आध्यात्मिक साधना का उद्देश्य अपनी स्वयं की पृथकता के बोध यानि स्वयं के अस्तित्व को परमात्मा में पूर्ण विलीन करना है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ अगस्त २०२४
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