Sunday, 25 August 2024

हम चाह कर भी आध्यात्मिक साधना क्यों नहीं कर पाते? हम भगवान का भजन करना चाहते हैं, लेकिन नहीं कर पाते। इसका कारण क्या है?

 इसके सिर्फ दो ही कारण हैं, कोई तीसरा कारण नहीं है।

पहला कारण तो है हमारे जीवन में तमोगुण का प्रभाव।
दूसरा कारण है बाहरी नकारात्मक परिस्थितियाँ, और उनके कारण हमारा गलत स्वभाव।
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तमोगुण से तो हमें मुक्त होना ही पड़ेगा। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने तमोगुण के लक्षण बताए हैं। यदि हम तमोगुण से ग्रस्त हैं तो हमें भगवान की विशेष कृपा, कुसंग के त्याग, और निरंतर सत्संग की आवश्यकता है। यह तमोगुण किसी भी परिस्थिति में हमें भजन नहीं करने देता।
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कई बार बाहरी परिस्थितियाँ भी हमें भजन नहीं करने देतीं, जैसे घर-परिवार का गलत वातावरण आदि।
आज से ५६ वर्ष पूर्व मैं किसी प्रशिक्षण हेतु दो वर्ष के लिए रूस (सोवियत संघ) गया था। उस समय मार्क्सवादी साम्यवाद अपने चरम पर था। रूसी भाषा का मुझे बहुत अच्छा ज्ञान था। वहाँ के नागरिकों के लिए किसी भी तरह की कोई धार्मिक आस्था की अनुमति नहीं थी। यदि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक आस्था में विश्वास रखता पाया जाता तो उसे पकड़ कर विखंडित-व्यक्तित्व का मनोरोगी घोषित कर पागलखाने में डाल दिया जाता। वहाँ से कोई भाग्यशाली ही जीवित बापस लौटता था।
यह बात सारे पूर्व सोवियत संघ और सभी साम्यवादी देशों में थी।
आज से ४३ वर्ष पूर्व उत्तरी कोरिया जाने का अवसर मिला था २० दिनों के लिए। वहाँ भी मेरा रूसी भाषा का ज्ञान बहुत काम आया। वहाँ तो भगवान का नाम लेने पर गोली ही मार देते थे। यह बात सत्य है, कोई कपोल-कल्पना नहीं।
चीन का भी मैंने भ्रमण किया है। वहाँ भी लोग भगवान का नाम लेने से ही डर जाते थे। सबसे बुरा हाल तो पूर्वी यूरोप में रोमानिया का था। जब वहाँ का राष्ट्रपति चाउसेस्को था उस समय पूरे देश का राष्ट्रीय चरित्र ही नष्ट हो गया था। पूरा देश ही चरित्रहीन और भ्रष्ट हो गया था। मार्क्सवाद जहां जहां जिन जिन देशों में भी गया, वहाँ एक महाविनाश के अवशेष छोड़ता गया।
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ऐसे देशों में जन्म लेना ही नर्क की यंत्रणा भोगना होता है। दुनियाँ के कई इस्लामी मज़हबी और ईसाई रिलीजियस देशों का भी भ्रमण मैंने किया है। वहाँ कोई आध्यात्म नहीं है। वे देश भी घोर नर्ककुंड हैं। वहाँ जन्म लेना भी नर्क की यंत्रणा भोगना है।
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हम लोगों ने कई जन्मों में कई पुण्य किए होंगे, जो भारत में जन्म मिला। अंत में यह वाक्य लिखकर इस लेख को समाप्त करता हूँ कि जिसने भारतवर्ष में जन्म लेकर भी भगवान का भजन नहीं किया, वह अभागा है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनूं (राजस्थान)
२५ अगस्त २०२३

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