वर्षा के जल का संग्रहण :-----
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भारत में वर्षा के जल के संग्रहण की तकनीक हजारों वर्ष पुरानी है| इस तकनीक का उपयोग घरों में, सामुदायिक बावड़ियों/तालाबों में, प्राचीन मंदिरों/धर्म-स्थलों में बनवाए गए विशाल जलकुंडों में, और राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाये गए किलों में होता आया है| राजस्थान के उन सब भागों में जहाँ पानी की कमी रही है, या जहाँ जहाँ भूमि में खारा पानी है, प्रायः हर घर में एक भूमिगत पक्का जलकुंड होता है| आजकल तो सीमेंट से उनका निर्माण होता है, प्राचीन काल में चूने और सुर्खी से होता था| घर की छत की ढाल और बंद नालियों की बनावट ऐसी होती है कि पानी सीधा भूमिगत कुंड में जाता है| घर की छत को हर समय बहुत साफ़ रखते हैं, वहाँ जूते या चप्पल पहिन कर नहीं जाते| कुंड में जाने वाले नाले के अंतिम सिरे को बंद रखते हैं ताकि भूल से भी उसमें अपवित्र जल नहीं चला जाए| पहली वर्षा का जल उसमें नहीं जाने देते| पहली वर्षा के बाद उस नाले को खोल देते हैं| फिर हर वर्षा का जल उस कुंड में एकत्र हो जाता है जिसे पूरे वर्ष पीने के काम में लेते हैं| कुंड को हर समय ढक कर रखते हैं| पानी निकालने के लिए साफ़ बाल्टी और रस्सी का प्रयोग करते हैं|
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अब सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि बड़े बड़े भवनों की छतों का जल बाहर सड़क पर न बह कर भूमि में ही जाए, जिससे भूमिगत जल स्तर की वृद्धि हो| पीने के पानी की कमी होती जा रही है जिसका समाधान वर्षा के जल को एकत्र करना ही होगा|
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पिछले कुछ दिनों से वर्षा का संग्रहित जल ही पी रहा हूँ जिसे हमारे यहाँ पालर का पानी कहते हैं| वह इतना अच्छा लग रहा है कि RO का पानी बंद ही कर दिया है| अब समझ में आ रहा है कि वर्षा का संग्रहित पानी पीने वाले लोग इतने स्वस्थ क्यों रहते हैं, उनके घुटने कभी खराब नहीं होते| पचास वर्ष पूर्व तक तो हम लोग कुओं का पानी ही पीते थे| जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल में फ्लुरोइड होता था वहाँ के लोग तो सदा ही पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह करते थे| भूजल स्तर नीचे जाने से अब म्युनिसिपल पानी में भी फ्ल्युरोइड आने लगा है| पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अप्रेल २०१८
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भारत में वर्षा के जल के संग्रहण की तकनीक हजारों वर्ष पुरानी है| इस तकनीक का उपयोग घरों में, सामुदायिक बावड़ियों/तालाबों में, प्राचीन मंदिरों/धर्म-स्थलों में बनवाए गए विशाल जलकुंडों में, और राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाये गए किलों में होता आया है| राजस्थान के उन सब भागों में जहाँ पानी की कमी रही है, या जहाँ जहाँ भूमि में खारा पानी है, प्रायः हर घर में एक भूमिगत पक्का जलकुंड होता है| आजकल तो सीमेंट से उनका निर्माण होता है, प्राचीन काल में चूने और सुर्खी से होता था| घर की छत की ढाल और बंद नालियों की बनावट ऐसी होती है कि पानी सीधा भूमिगत कुंड में जाता है| घर की छत को हर समय बहुत साफ़ रखते हैं, वहाँ जूते या चप्पल पहिन कर नहीं जाते| कुंड में जाने वाले नाले के अंतिम सिरे को बंद रखते हैं ताकि भूल से भी उसमें अपवित्र जल नहीं चला जाए| पहली वर्षा का जल उसमें नहीं जाने देते| पहली वर्षा के बाद उस नाले को खोल देते हैं| फिर हर वर्षा का जल उस कुंड में एकत्र हो जाता है जिसे पूरे वर्ष पीने के काम में लेते हैं| कुंड को हर समय ढक कर रखते हैं| पानी निकालने के लिए साफ़ बाल्टी और रस्सी का प्रयोग करते हैं|
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अब सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि बड़े बड़े भवनों की छतों का जल बाहर सड़क पर न बह कर भूमि में ही जाए, जिससे भूमिगत जल स्तर की वृद्धि हो| पीने के पानी की कमी होती जा रही है जिसका समाधान वर्षा के जल को एकत्र करना ही होगा|
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पिछले कुछ दिनों से वर्षा का संग्रहित जल ही पी रहा हूँ जिसे हमारे यहाँ पालर का पानी कहते हैं| वह इतना अच्छा लग रहा है कि RO का पानी बंद ही कर दिया है| अब समझ में आ रहा है कि वर्षा का संग्रहित पानी पीने वाले लोग इतने स्वस्थ क्यों रहते हैं, उनके घुटने कभी खराब नहीं होते| पचास वर्ष पूर्व तक तो हम लोग कुओं का पानी ही पीते थे| जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल में फ्लुरोइड होता था वहाँ के लोग तो सदा ही पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह करते थे| भूजल स्तर नीचे जाने से अब म्युनिसिपल पानी में भी फ्ल्युरोइड आने लगा है| पीने के लिए वर्षा के जल का संग्रह ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ अप्रेल २०१८
जल का संकट .....
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पूरा भारत पानी के अभाव से जूझ रहा है| हर दिन हालत बिगड़ रहे हैं| पानी की उपयोगिता और खर्च दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है| यह निकट भविष्य की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रही है|
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मेरा एक सुझाव है कि सरकारी कार्यालयों, मंत्रियों, अधिकारियों व कर्मचारियों के निवासों, और व्यक्तिगत निवासों पर लॉन लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये| इससे पानी की बर्बादी रुक जायेगी|
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जिन लोगों ने अपने घरों में लॉन यानि दूब के बगीचे लगा रखे हैं, उन्हें दूब के स्थान पर सब्जियाँ उगानी चाहियें|
सब्जी का उपयोग स्वयं कीजिये और औरों को भी दीजिये| समाज का भला होगा|
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कृपया इस सन्देश को यथासंभव खूब फैलाएं | धन्यवाद|
१४ अप्रेल २०१६