"विजय दिवस" पर अभिनन्दन, बधाई और शुभ कामनाएँ .....
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विजय दिवस ..... १६ दिसंबर १९७१ के दिन भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस युद्ध में ९३००० पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और एक नए देश 'बांग्लादेश' का जन्म हुआ| इस युद्ध में भारत के लगभग ३९०० सैनिक शहीद हुए और ९८५१ घायल हुए|
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इस युद्ध में हुतात्मा भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि, और उस समय के सभी अब तो वयोवृद्ध हुए, युद्ध में जिन्होनें सक्रीय भाग लिया था, War Veterans (जिनमें मैं भी हूँ) का अभिनन्दन !
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(१९७१ के युद्ध में बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना की एक ही पनडुब्बी I.N.S.Khanderi थी, जिसने उस समय के पूर्वी पाकिस्तान जाने के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर युद्ध में सक्रीय भाग लिया था. उस पनडुब्बी पर मैं नियुक्त था. कुछ समय के लिए मैं नौसेना में था और १९६५ व १९७१ के युद्धों में सक्रीय भाग लिया था. १९६५ के युद्ध में मैं नौसेना के फ्लैगशिप I.N.S.Mysore पर नियुक्त था. दोनों युद्धों के सारे घटनाक्रम मुझे पूरी तरह याद हैं. मेरे कई मित्रों ने १९७१ के युद्ध में बड़े साहसिक कार्य किये थे).
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८
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विजय दिवस ..... १६ दिसंबर १९७१ के दिन भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस युद्ध में ९३००० पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और एक नए देश 'बांग्लादेश' का जन्म हुआ| इस युद्ध में भारत के लगभग ३९०० सैनिक शहीद हुए और ९८५१ घायल हुए|
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इस युद्ध में हुतात्मा भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि, और उस समय के सभी अब तो वयोवृद्ध हुए, युद्ध में जिन्होनें सक्रीय भाग लिया था, War Veterans (जिनमें मैं भी हूँ) का अभिनन्दन !
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(१९७१ के युद्ध में बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना की एक ही पनडुब्बी I.N.S.Khanderi थी, जिसने उस समय के पूर्वी पाकिस्तान जाने के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर युद्ध में सक्रीय भाग लिया था. उस पनडुब्बी पर मैं नियुक्त था. कुछ समय के लिए मैं नौसेना में था और १९६५ व १९७१ के युद्धों में सक्रीय भाग लिया था. १९६५ के युद्ध में मैं नौसेना के फ्लैगशिप I.N.S.Mysore पर नियुक्त था. दोनों युद्धों के सारे घटनाक्रम मुझे पूरी तरह याद हैं. मेरे कई मित्रों ने १९७१ के युद्ध में बड़े साहसिक कार्य किये थे).
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१८
विजय दिवस पर विशेष प्रस्तुति :----
ReplyDeleteयह चित्र पकिस्तान के तत्कालीन गर्व, पाकिस्तानी पनडुब्बी 'गाजी' का है जो १९७१ के भारत-पाक युद्ध के समय विशाखापत्तनम बंदरगाह के प्रवेश मार्ग के पास डुबा दी गयी थी| यह पनडुब्बी कैसे डुबाई गयी यह एक रहस्य ही है जिसे कोई नहीं जानता| भारतीय नौसेना द्वारा बताए गए और पाकिस्तानी नौसेना द्वारा बताए गए कारणों में दिन-रात का अंतर है| सत्य क्या है यह किसी को नहीं पता| किसी को भी पता नहीं था कि कहाँ पर क्या डूबा और कहाँ पर विस्फोट हुआ ? एक बड़ा भयंकर विस्फोट हुआ था जिसे दूर तक सुना गया और यही अनुमान लगाया गया था कि यह भारतीय नौसेना द्वारा फेंके गए किसी डेप्थ-चार्ज का विस्फोट था जिसे युद्धपोत, शत्रु पनडुब्बी के होने का संदेह होने पर फेंकते हैं| यह गहरे पानी में जाकर विस्फोट करता है| इस लेख में चित्रों सहित पूरी जानकारी दी गयी है|
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कुछ बातें जो इस लेख में नहीं हैं, वे यहाँ लिख रहा हूँ| विशाखापटनम के आसपास के मछुआरों ने नौसेना को सूचना दी कि समुद्र में कोई जहाज डूबा है| उस डूबे हुए जहाज को खोजने के लिए नौसेना के गोताखोरों का एक दल भेजा गया| उस स्थान पर पानी के बुलबुले उठ रहे थे, पानी का बहाव बहुत तेज़ था, और गहरे समुद्र में गोताखोरी की सभी सुविधाएँ उस समय उस स्थान पर समयाभाव के कारण नहीं पहुँच पाई थीं| नौसेना का जो सर्वाधिक कुशल और सर्वश्रेष्ठ गोताखोर था वह अपनी जान जोखिम में डाल कर नीचे गया जहाँ उसे एक शॉक तो लगा पर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि जो डूबा हुआ है वह कोई जहाज नहीं बल्कि पनडुब्बी है, जिसका आगे का भाग किसी विस्फोट से पूरी तरह नष्ट हो चुका है|
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जब पता चला कि एक पनडुब्बी डूबी है तो गोपनीय रूप से एक तहलका सा मच गया| अब अगला कदम यह था कि उस पनडुब्बी की पहिचान की जाए| अवशेष तो जितने भी मिले उन पर अमेरिका में निर्मित लिखा हुआ था| यह तो पता चल गया की यह पनडुब्बी अमेरिका में निर्मित है पर कौन सी है इसका पता नहीं चला| सभी सुविधाएँ जुटा कर नौसेना के गोताखोर नीचे गए, पनडुब्बी के Aft escape hatch को बारूद के विस्फोट से उड़ाकर वे पनडुब्बी के अन्दर गए, कुछ लाशों को निकाला, पनडुब्बी के वायरलेस टेलीग्राफ ऑफिस से सारे डाक्यूमेंट्स एकत्र कर ऊपर लाये गए, उन्हें सुखाकर उनका अध्ययन किया गया | यह तो पता चल ही गया था कि यह पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी थी, उसके साथ साथ कई रहस्यों का भी पता चला जो चौंकाने वाले थे| कई अपनी स्वयं की यानि भारत की सुरक्षात्मक कमियों का भी पता चला| पाकिस्तानी जासूसों ने भारत के भीतर कारवार बंदरगाह में अपना एक अड्डा बना रखा था, जहाँ से पाकिस्तानी पनडुब्बी को राशन-पानी की आपूर्ति भोलेभाले मछुआरों के माध्यम से होती थी| कई रहस्य खुले जिनसे देश की सुरक्षा को और भी मजबूत किया गया|
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पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी के चालकदल (Crew) में कई बंगाली भी थे| यह पनडुब्बी अमेरिका से refit करवा कर जब आ रही थी तब किसी विदेशी पोर्ट से उनमें से आधे बंगाली तो किसी तरह भाग कर रहस्यमय तरीके से भारत में आ गए थे जिन्होनें काफी सूचनाएँ दीं| जो भागकर नहीं आ पाए, पाकिस्तानियों द्वारा उनकी गोली मारकर ह्त्या कर दी गयी|
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इस पनडुब्बी का डूबना चाहे कैसे भी हुआ हो, पर भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि और शान की बात थी| मुझे भारतीय नौसेना पर गर्व है जहां मैंने भी कुछ समय तक सेवा की है| भारतीय नौसेना की जय हो ! भारत माता की जय हो ! वन्दे मातरं !
December 16 at 9:40 PM ·
ReplyDeleteमैं अपने एक बहुत पुराने मित्र को सम्मानित करना चाहता था जो १९७१ के भारत-पाक युद्ध का एक वयोवृद्ध वीर योद्धा है| उसे सम्मान तो कई मिले पर जो ऊँचा सम्मान उसे मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला, क्योंकि उस सम्मान को उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने ले लिया| उसने आज शाम को मेरे घर पर आकर मेरा ही मान बढ़ाया| ४७ वर्ष पूर्व हुए उस युद्ध के समय की कई स्मृतियों पर चर्चा हुईं| मेरा वह मित्र अपने समय में नौसेना का सर्वश्रेष्ठ गोताखोर था जिसने डूबी हुई पाकिस्तानी पनडुब्बी का पता लगाया, बाद में उसके Aft escape hatch को डायनामाईट के विस्फोट से उड़ाकर उसमें प्रवेश कर पनडुब्बी के वायरलेस टेलीग्राफ ऑफिस से सारे डाक्यूमेंट्स एकत्र कर सुरक्षित ऊपर पहुंचाए, कई लाशें सबूत के रूप में निकालीं, अन्य कई महत्वपूर्ण कार्य युद्ध के समय और उस से पूर्व किये| उस युद्ध में जितने भी नौसैनिक और अधिकारी मेरे साथ थे किसी को भी नहीं भूला हूँ| सभी की स्मृतियाँ हैं| भारत माता की जय !
आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री
ReplyDeleteMarch 6
कई लोग अनजाने में लिख रहे हैं की अब्दुल हमीद ने पेटेंट टेक उड़ाए थे,जबकि ये सरासर झूठ है और कांग्रेस का हिन्दुओं से एक और विश्वासघात है...!
चंद्रभान साहू ने पेटेंट टेक को उड़ाए था ना की किसी अब्दुल हमीद ने...!
परमवीर चक्र भी उसी हिंदू सैनिक चंद्रभान साहू ने जीता था ना की किसी अब्दुल हमीद ने...!
बात सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध की है...
जब अमेरिका द्वारा प्राप्त अत्याधुनिक पैटन टैंकों के बूते पाकिस्तान जीत के लिये अट्टहास कर रहा था और भारतीय सेना इन टैंकों से निपटने के लिये चिंतित थी...
इससे भी अधिक एन युद्द के वक़्त भारतीय सेना की मुस्लिम बटालियन के अधिकांश मुस्लिम सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के खेमे में चले जाने व बाकी मुस्लिम सैनिकों द्वारा उसके समर्थन में हथियार डाले जाने से भारतीय खेमे में आत्मविश्वास की बेहद कमी व घोर निराशा थी...
उस घोर निराशा व बेहद चिंताजनक स्थिति के वक़्त आशा की किरण व पूरे युद्घ का महानायक बनकर आया था, भारतीय सेना का एक बीस वर्षीय नौजवान,सैनिक चंद्रभान साहू...(पूरा पता-- चंद्रभान साहू सुपुत्र श्री मौजीराम साहू,गांव रानीला, जिला भिवानी वर्तमान जिला चरखी दादरी हरियाणा)...
रानीला गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सैनिक चंद्रभान साहू का शव बेहद क्षत-विक्षत व टुकड़ों में था शव के साथ आये सैनिक व अधिकारी अश्रुपूर्ण आंखों से उसकी अमर शौर्यगाथा सुना रहे थे कि किस तरह एक के बाद एक उसने अकेले पांच पैटन टैंक नष्ट कर दिये थे इसमें बुरी तरह घायल हो चुके थे और उन्हें जबरन एक तरफ लिटा दिया गया था कि आप पहले ही बहुत बड़ा कार्य कर चुके हैं,अब आपको ट्रक आते ही अन्य घायलों के साथ अस्पताल भेजा जायेगा लेकिन सैनिक चंद्रभान साहू ये कहते हुए उठ खड़े हुए कि मैं एक तरफ लेटकर युद्घ का तमाशा नहीं देख सकता, घर पर माता-पिता की बुढ़ापे में सेवा के लिये और भाई हैं, मैं अन्तिम सांस तक लडूंगा और दुश्मन को अधिकतम हानि पहुँचाऊँगा...
कोई हथियार न दिये जाने पर साक्षात महाकाल का रूप धारण कर सबके मना करते करते भी अभूतपूर्व वीरता व साहस दिखाते हुए एंटी टैंक माइन लेकर पास से गुजरते टैंक के नीचे लेटकर छठा टैंक ध्वस्त कर युद्घ में प्राणों का सर्वोच्च बलिदान कर दिया...
उनके इस सर्वोच्च व अदभुत बलिदान ने भारतीय सेना में अपूर्व जोश व आक्रोश भर दिया था व उसके बाद हर जगह पैटन टैंकों की कब्र खोद दी गई ग्रामीणों ने नई पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिये दशकों तक उसका फोटो व शौर्यगाथा रानीला गांव के बड़े स्कूल में टांग कर रखी और आज भी स्कूल में उनका नाम लिखा हुआ बताते हैं...
बार्डर फिल्म में जो घायल अवस्था में सुनील शेट्टी वाला एंटी-टैंक माइन लेकर टैंक के नीचे लेटकर टैंक उड़ाने का दृश्य है, वो सैनिक चंद्रभान साहू ने वास्तव में किया था ऐसे रोम रोम से राष्ट्रभक्त महायोद्धा सिर्फ भारतभूमि पर जन्म ले सकते हैं...
मुस्लिम रेजिमेंट द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने से मुस्लिमों की हो रही भयानक किरकिरी को रोकने व मुस्लिमों की छवि ठीक रखने के लिये इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने परमवीर चंद्रभान साहू की अनुपम वीरगाथा को पूरे युद्घ के एकमात्र मुस्लिम मृतक अब्दुल हमीद के नाम से अखबारों में छपवा दिया व रेडियो पर चलवा दिया और अब्दुल हमीद को परमवीर चक्र दे दिया व इसका असली अधिकारी सैनिक चंद्रभान साहू गुमनामी के अंधेरे में खो गया...!!!🚩🙏
Sir please provide some sporting document ao link for your story.
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