Tuesday, 18 December 2018

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....

साधना में कर्ता कौन हैं ?.....
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आध्यात्मिक साधना में "कर्ता" सिर्फ भगवान हैं| वे ही साध्य हैं, वे ही साधना हैं, और साधक भी वे ही हैं| भक्ति का दिखावा और भक्ति का अहंकार ..... साधना पथ पर सबसे बड़ी बाधाएँ हैं| यह स्वयं को ठगना और स्वयं को धोखा देना है| आध्यात्मिक साधना और भक्ति, गोपनीय होनी चाहिएँ| इस धोखे से बचने का एक ही उपाय है, और वह है .... "समर्पण"| अपनी भक्ति और साधना का फल तुरंत भगवान को अर्पित कर दो, अपने पास बचाकार कुछ भी ना रखो, सब कुछ भगवान को अर्पित कर दो| अपने आप को भी परमात्मा को अर्पित कर दो| कर्ता भाव से मुक्त हो जाओ| हम भगवान के एक उपकरण या खिलौने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं हैं| कर्ता तो भगवान स्वयं हैं|
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वास्तव में हम कोई साधना नहीं करते हैं| हमारे माध्यम से हमारे गुरु और परमात्मा ही साधना करते हैं| उन्हें कर्ता बनाने से लाभ यह है कि किसी भी भूल-चूक का वे शोधन कर देते हैं| हम तो निमित्त मात्र हैं| प्रभु प्रेम के अतिरिक्त हृदय में अन्य कोई वासना नहीं होनी चाहिए| उनके प्रेम पर तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| अन्य कुछ भी हमारा नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ गुरु ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१८

1 comment:

  1. जब तक इस शरीर को धारण कर रखा है तब तक मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष का एक विचारशील नागरिक हूँ| भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में होने वाली हर घटना का मुझ पर ही नहीं सब पर प्रभाव पड़ता है| आध्यात्म के नाम पर भौतिक जगत से मैं तटस्थ नहीं रह सकता| पर यदि भारत, भारत ही नहीं रहेगा तब धर्म भी नहीं रहेगा, श्रुतियाँ-स्मृतियाँ भी नहीं रहेंगी, यानि वेद आदि ग्रन्थ भी नष्ट हो जायेंगे, साधू-संत भी नहीं रहेंगे, सदाचार भी नहीं रहेगा और देश की अस्मिता ही नष्ट हो जायेगी| इसी तरह यदि धर्म ही नहीं रहा तो भारत भी नहीं रहेगा| दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं| अतः राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि दायित्व है| धर्म के बिना राष्ट्र नहीं है, और राष्ट्र के बिना धर्म नहीं है| सनातन धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन धर्म है|

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