Tuesday 18 December 2018

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

आज से दो वर्ष पूर्व हुई एक अनुभूति .....

"कल पूरी रात खाँसी से त्रस्त था, रात को सो नहीं पाया, पूरी रात बहुत खाँसी आई| भोर में बहुत थोड़ी सी देर नींद आई| जब नींद खुली तब एक बड़ी दिव्य अनुभूति हुई| मन में यही प्रश्न उठा कि मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि क्या हो सकती है? अचानक दोनों नासिकाएँ खुल गईं, दोनों नासिकाओं से सांस चलने लगी, सुषुम्ना चैतन्य हो गयी, मैं कमर सीधी कर के बैठ गया और एक दिव्य अलौकिक चेतना में चला गया| पूरा ह्रदय प्रेम से भर उठा| प्रेम भी ऐसा जो अवर्णनीय है| पूरा अस्तित्व प्रेममय हो गया| प्रेमाश्रुओं से नयन भर गए| ऐसा लगा जैसे एक छोटा सा बालक जगन्माता की गोद में बैठा हो और माँ उसे खूब प्रेम कर रही हो| तब इस प्रश्न का उत्तर मिल गया कि जीवन की उच्चतम उपलब्धी क्या हो सकती है| जब प्रत्यक्ष परमात्मा का प्यार चाहे वह अति अल्प मात्रा में ही मिल जाए, तो उससे बड़ी अन्य क्या कोई उपलब्धी हो सकती है? हे जगन्माता, चाहे तुमने अपने प्यार का एक कण ही दिया हो, पर वह मेरे लिए अनमोल है| माँ, मुझे अपनी चेतना में रखो| तुम्हारा प्यार ही मेरे लिए सर्वोच्च उपलब्धी है| तुम्हारे प्रेम की चेतना में निरंतर सचेतन स्थित रहूँ| और कुछ भी नहीं चाहिए| 

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१६

No comments:

Post a Comment