गीता जयंती १८ दिसंबर २०१८ की प्रातः शोभायात्रा :----
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"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||गीता:२:७||
भावार्थ :--- करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो उसे आप निश्चय करके कहिये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. शरण में आये मुझको आप उपदेश दीजिये ||
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"गीता जयंती" कल मंगलवार १८ दिसंबर २०१८ को पूरे देश में मनाई जा रही है| इसकी तिथि पर कुछ मतभेद था, कुछ विद्वान् पंडित इसे १९ दिसंबर को बता रहे थे, पर अब प्रायः सभी १८ को ही मना रहे हैं| गीता के किसी भी एक अध्याय का अर्थ सहित स्वाध्याय करें| यदि अधिक का कर सकते हैं तो अधिक का करें, पर करें अवश्य|
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राजस्थान के झुंझुनूं नगर में कई माताएँ तीन अलग अलग स्थानों से प्रातः संकीर्तन करते हुए प्रभातफेरी निकालती हैं| वे तीनों प्रभातफेरी परिवार मिल कर इंदिरा नगर के नगर नरेश बालाजी मंदिर से कल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी दिनांक १८ दिसंबर २०१८ मंगलवार को प्रातः ६ बजे हरिकीर्तन व गीता जी के श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ शोभायात्रा निकालेंगी| यह शोभायात्रा गौशाला तक जायेगी| वहीं से पूजा और प्रसाद वितरण के बाद विसर्जन होगा| वहाँ छोटे बच्चों के मुंह से गीता के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण सुनकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा|
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गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है| गीता ईश्वर का ज्ञान है जिसे स्वयं भगवान ने दिया है ..... या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता || श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी| यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है|
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गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं| इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है| इसके छोटे-छोटे १८ अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं|
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सभी स्थानीय श्रद्धालुगण अवश्य पधारें.
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्| देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्||
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"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||गीता:२:७||
भावार्थ :--- करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो उसे आप निश्चय करके कहिये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. शरण में आये मुझको आप उपदेश दीजिये ||
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"गीता जयंती" कल मंगलवार १८ दिसंबर २०१८ को पूरे देश में मनाई जा रही है| इसकी तिथि पर कुछ मतभेद था, कुछ विद्वान् पंडित इसे १९ दिसंबर को बता रहे थे, पर अब प्रायः सभी १८ को ही मना रहे हैं| गीता के किसी भी एक अध्याय का अर्थ सहित स्वाध्याय करें| यदि अधिक का कर सकते हैं तो अधिक का करें, पर करें अवश्य|
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राजस्थान के झुंझुनूं नगर में कई माताएँ तीन अलग अलग स्थानों से प्रातः संकीर्तन करते हुए प्रभातफेरी निकालती हैं| वे तीनों प्रभातफेरी परिवार मिल कर इंदिरा नगर के नगर नरेश बालाजी मंदिर से कल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी दिनांक १८ दिसंबर २०१८ मंगलवार को प्रातः ६ बजे हरिकीर्तन व गीता जी के श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ शोभायात्रा निकालेंगी| यह शोभायात्रा गौशाला तक जायेगी| वहीं से पूजा और प्रसाद वितरण के बाद विसर्जन होगा| वहाँ छोटे बच्चों के मुंह से गीता के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण सुनकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा|
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गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है| गीता ईश्वर का ज्ञान है जिसे स्वयं भगवान ने दिया है ..... या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता || श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी| यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है|
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गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं| इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है| इसके छोटे-छोटे १८ अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं|
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सभी स्थानीय श्रद्धालुगण अवश्य पधारें.
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्| देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्||
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