Friday 14 December 2018

भारत का मतदाता .....

भारत का मतदाता .....
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भारत के एक सामान्य मतदाता को क्या पता है कि ..... (१) राजकोषीय घाटा क्या होता है?, (२) जो सब्सिडी में और निःशुल्क वितरण में मिलता है उसका मूल्य कौन चुकाता है?, (३) जीडीपी रेट में वृद्धि क्या होती है?.
भारत का मतदाता सदा शिकायत ही करता रहता है| उसे प्याज और दाल बहुत सस्ते में चाहिए, उसी समय किसान को उसकी ऊंची कीमत भी मिलनी चाहिए| भारत के मतदाता में ऐसी धारणा है कि हर कार्य सरकार ही करेगी, उसे तो शिकायत और निंदा के सिवाय और कुछ भी नहीं करना है| भारत के मतदाता को दूरगामी परिणामों के बारे कोई चिंता नहीं है| उसको तो सब कुछ इसी समय और अभी चाहिए| भारत के मतदाता की याददाश्त बहुत कम है और भविष्य की दृष्टी भी बहुत सीमित है| भूतकाल को तो वह बहुत ही शीघ्र भूल जाता है|
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भारत का मतदाता जाति के आधार पर मतदान करता है| जातिवाद सरकारी आरक्षण के कारण जीवित है| इस जातिवादी आरक्षण के कारण भारत में योग्यता की कोई कद्र नहीं है, प्रतिभाशाली लोग देश छोड़कर चले जाते हैं, और अयोग्य लोग प्रशासन चलाते हैं|
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भारत के समृद्ध किसान ऋण माफी के लिए आन्दोलन करते हैं| पर उस ऋण की कीमत कौन चुकाएगा? वह राशि तो देश के नागरिकों से ही करों के रूप में वसूली जायेगी| क्या उस ऋण की राशि को सचमुच कृषि में ही लगाया जाता है? उससे कृषि मजदूर और बटाई पर खेती करने वाले को क्या लाभ होता है?
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भारत की रक्षा व्यवस्था पांच वर्ष पहिले से बहुत अच्छी है| पाकिस्तान और चीन भारत से युद्ध करने में घबराते हैं| पर यह कैसे हुआ इसका मतदाता को क्या पता है?
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भारत के दूरगामी हितों के बारे में ही सोचते रहने से कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता| चुनाव वही जीत सकता है जो खाओ और खाने दो की नीति में विश्वास रखता हो| बड़ी जटिल अवस्था है भारत की| भगवान ही मालिक है| वही २०१९ के चुनावों में भारत का बेड़ा पार लगाएगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१३ दिसंबर २०१८

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