संत-महात्माओं के सत्संग से प्राप्त कुछ ज्ञान की बातें .....
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(१) किसी भी शब्द को बोलने से पहले दस बार सोचें| अनमोल हैं हमारे वचन| हमारी वाणी मिथ्या न हो| लोभ-लालच में आकर झूठ न बोलें| सत्य ही नारायण है और सत्य ही परमशिव परमात्मा है| असत्य बोलने से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से की गयी कोई भी प्रार्थना, जप, स्तुति आदि कभी फलीभूत नहीं होती|
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(२) द्वैत-अद्वैत, साकार-निराकार सब परमात्मा ही है| इस विषय पर कोई विवाद न करें|
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(३) हम लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक मजारों पर जाकर अपना सिर पटकते हैं, विभिन्न देवी-देवताओं की मनौतियाँ करते हैं, यह हमारा लोभ ही है| हमें पता ही नहीं चलता कि ऐसा करने से हमारी चेतना कितनी नीचे चली जाती है| हम मंगते भिखारी ही बने रहते हैं|
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(४) भगवान् तो हमारे साथ सदैव हैं, यहीं हैं, इसी समय हैं, निरंतर हैं और सदा रहेंगे| अब भय और चिंता किस बात की? जहाँ भगवान हैं वहाँ चिंता और भय हो ही नहीं सकते| भय की सीमा इतनी ही है कि वह कोई गलत कार्य करने से पूर्व हमें चेतावनी दे दे, बस, इससे अधिक और कुछ नहीं| जो लोग भगवान से डरना सिखाते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| भगवान तो प्रेम हैं, प्रेम से भय कैसा? हम लोग अपने बच्चों को डरा डरा कर डरपोक बना देते हैं, जो गलत है| किसी को भी भयभीत करना सबसे बड़ा दंड है और पाप भी है|
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(५) भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| उस जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के लिए कैसी प्रार्थना? क्या आप अपने माता-पिता का प्यार पाने के लिए प्रार्थना करते हैं? वह तो आपका अधिकार है| कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई गिडगिडाना नहीं, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, और वे भी आपको प्यार करने को बाध्य हो जायेंगे क्योंकि यह उनका स्वभाव है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०१८
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(१) किसी भी शब्द को बोलने से पहले दस बार सोचें| अनमोल हैं हमारे वचन| हमारी वाणी मिथ्या न हो| लोभ-लालच में आकर झूठ न बोलें| सत्य ही नारायण है और सत्य ही परमशिव परमात्मा है| असत्य बोलने से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से की गयी कोई भी प्रार्थना, जप, स्तुति आदि कभी फलीभूत नहीं होती|
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(२) द्वैत-अद्वैत, साकार-निराकार सब परमात्मा ही है| इस विषय पर कोई विवाद न करें|
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(३) हम लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक मजारों पर जाकर अपना सिर पटकते हैं, विभिन्न देवी-देवताओं की मनौतियाँ करते हैं, यह हमारा लोभ ही है| हमें पता ही नहीं चलता कि ऐसा करने से हमारी चेतना कितनी नीचे चली जाती है| हम मंगते भिखारी ही बने रहते हैं|
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(४) भगवान् तो हमारे साथ सदैव हैं, यहीं हैं, इसी समय हैं, निरंतर हैं और सदा रहेंगे| अब भय और चिंता किस बात की? जहाँ भगवान हैं वहाँ चिंता और भय हो ही नहीं सकते| भय की सीमा इतनी ही है कि वह कोई गलत कार्य करने से पूर्व हमें चेतावनी दे दे, बस, इससे अधिक और कुछ नहीं| जो लोग भगवान से डरना सिखाते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| भगवान तो प्रेम हैं, प्रेम से भय कैसा? हम लोग अपने बच्चों को डरा डरा कर डरपोक बना देते हैं, जो गलत है| किसी को भी भयभीत करना सबसे बड़ा दंड है और पाप भी है|
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(५) भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| उस जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के लिए कैसी प्रार्थना? क्या आप अपने माता-पिता का प्यार पाने के लिए प्रार्थना करते हैं? वह तो आपका अधिकार है| कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई गिडगिडाना नहीं, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, और वे भी आपको प्यार करने को बाध्य हो जायेंगे क्योंकि यह उनका स्वभाव है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०१८
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