Tuesday 11 December 2018

उपासना में श्रवण परम्परा यानी सुनने का महत्व :---

उपासना में श्रवण परम्परा यानी सुनने का महत्व :---
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संत-महात्माओं के मुख से सुना है कि वेदांत में श्रवण करने यानि सुनने का बड़ा महत्व है| श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया अतः वेदों के ज्ञान को श्रुति कहते हैं| ब्राह्मणों ने इन्हें बार बार सुन कर ही अभ्यास किया और उन्हें कंठस्थ कर के जीवित रखा| इसी के कारण वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते| सिर्फ लिख कर ही किसी ज्ञान को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता| विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया| भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं| पर महत्वपूर्ण ग्रंथों को रट रट कर स्मृति में रख कर ब्राह्मण वर्ग ने उनको जीवित रखा| बाद में अंग्रेजों ने गुरुकुल पद्धति को प्रतिबंधित कर के ब्राह्मणों को इतना दरिद्र बना दिया कि वे अपने बच्चों को पढ़ाने में भी असमर्थ हो गए और फिर अंग्रेजों ने उनसे सारी पांडुलिपियाँ रद्दी के भाव खरीद लीं| फिर भी भगवान की कृपा से कुछ समर्पित ब्राह्मणों ने रट रट कर वेदों के ज्ञान को जीवित रखा| आज उन्हीं के कारण वेद सुरक्षित हैं|
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अब मैं उपासना में श्रवण के महत्व की चर्चा करूँगा| महात्माओं के मुख से सुना है कि श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, कुबुद्धि का त्याग होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और भवसागर से मुक्ति होती है| पर क्या सुनें ???
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इस विषय पर योगदर्शन में भी सूत्र हैं, और अनेक महात्माओं द्वारा लिखी हुई पुस्तकें भी हैं| इसके बारे में मैं यही सुझाव दूँगा कि किसी सिद्ध श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से इसकी विधि सीखें और उनसे दीक्षा लेकर ही उसका अभ्यास करें| गुरु-परम्परा से बाहर इस साधना की विधि की चर्चा करने का निषेध है| अतः निषेधात्मक कारणों से मैं इस विषय पर और चर्चा नहीं करूँगा| जितना बोलने का मुझे अधिकार है उतना ही बोलूँगा, उस से अधिक नहीं| मैं बात अनाहत नाद की कह रहा था| कुछ आचार्यों ने इसे जठराग्नि की ध्वनि बताया है, कुछ ने सुषुम्ना में जागृत हो रही कुण्डलिनी की आवाज़| यह बहुत ही शक्तिशाली साधना है जिसे किसी अधिकृत आचार्य से ही सीखें| बृहदारण्यक उपनिषद् में इस साधना की महिमा ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक की सभा में सभी उपस्थित ऋषियों को बताई है|
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ॐ श्री गुरवे नमः ! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

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