Wednesday, 16 November 2016

उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वे ही मेरे बंधन छुड़ाया करेंगे ......

उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन, वे ही मेरे बंधन छुड़ाया करेंगे ......
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{1} अब तो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को उस चोर-जार-शिखामणि, कुहुक-शिरोमणि और दुःख-तस्कर हरि ने चुरा लिया है| उस तस्कर का आकर्षण इतना प्रबल है कि छुटाने से नहीं छूटता| अब उससे हमें प्रेम हो गया है| उस हरि ने अब ह्रदय में अभीप्सा की प्रचंड अग्नि भी जला दी है|
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उस हरि ने कभी गजराज को बंधनों से मुक्त किया था, अब मुझे भी उन बंधनों से मुक्त करेंगे| उस दुःख-तस्कर, चोर-जार-शिखामणि और कुहुक-शिरोमणि हरि से बस एक ही निवेदन है कि जो कुछ भी थोड़ा-बहुत तथाकथित 'मैं' और 'मेरापन' रूपी अज्ञान बचा है उसे भी चुरा ले| मेरे लिए पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य सब मार्ग बंद हो गये हैं| मार्ग के अवरोध चोरी चोरी वह कब हटा लेगा इसका पता ही नहीं चलेगा|
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{2}भारत में प्रेमवश भक्तों ने भगवान को उलाहना देते हुए उन्हें ईर्ष्यालु और चोर तक कहा है| पर किसी ने भी उनकी इस बात का कभी बुरा या ईशनिंदा नहीं माना है| गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान को तस्कर और चोरों का चोर कहा है .....
"बालक्रीड़ासमासक्तो नवनीतस्य तस्करः |
गोपालकामिनीजारश्चोरजारशिखामणि: ||"
यहाँ भगवान को नवनीत तस्कर और चोरजारशिखामणि कहा गया है| इसका अर्थ है कि भगवान के समान चोर और जार और कोई है ही नहीं, और हो सकता भी नहीं है| दुसरे चोर और जार तो केवल अपना ही सुख चाहते हैं, पर भगवान केवल दूसरों के सुख के लिए चोर और जार की लीला करते हैं| उनकी ये दोनों ही लीलाएँ दिव्य, अलौकिक और विलक्षण हैं|
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संसारी चोर तो केवल वस्तुओं की ही चोरी करते हैं, परन्तु भगवान् वस्तुओं के साथ-साथ उन वस्तुओं के राग, आसक्ति और मोह आदि को भी चुरा लेते है| वे सुखासक्ति का भी हरण कर लेते हैं, जिससे कामाकर्षण न रहकर केवल विशुद्ध प्रेमाकर्षण रह जाता है| अन्य की सत्ता न रहकर केवल भगवान की सत्ता रह जाती है|
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भगवान अपने भक्तों में किसी को चोर और जार रहने ही नहीं देते, उनके चोर और जारपने को ही हर लेते हैं| कनक और कामिनी की इच्छा ही मनुष्य को चोर और जार बनाती है| भगवन अपने भक्त की इस इच्छा को ही हर लेते हैं इसी लिए वे "हरि" हैं| आसक्ति का सर्वदा अभाव करने वाले होने से भगवान् चोर और जार के भी शिखामणि हैं| अर्थात चोरों के भी चोर हैं जो चोरी की इच्छा को ही चुपचाप चुरा लेते हैं|
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कुहुक का अर्थ होता है ..... कोहरा| जैसे कोहरे में कोई छिप जाता है वैसे ही वे अपने मायावी आवरण रुपी कोहरे में छिपे हैं| इसलिए वे कुहुक-शिरोमणि हैं| अब तो उनके बिना हम रह ही नहीं सकते|
दुःख तस्कर वे हैं क्योंकि अपने भक्तों के दुःखों को हर लेते हैं|
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एक प्रचलित पुराना भजन याद आ रहा है .....

कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे |
कहीं तो मिलेंगे, वो बाँके बिहारी,
उन्हीं के चरण चित लगाया करेंगे।
जो रुठेंगे हमसे वो बाँके बिहारी,
चरण पड़ उन्हें हम मनाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्हें प्रेम डोरी से हम बाँध लेंगे,
तो फिर वो कंहाँ भाग जाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्होंने छुड़ाए थे गज के वो बंधन,
वहीँ मेरे संकट मिटाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥
उन्होंने नचाये थे ब्रह्माण्ड सारे,
मगर अब उन्हें हम नचाया करेंगे।
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में ब्रज की गुजारा करेंगे॥

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