Wednesday, 16 November 2016

यह मैं एक अनुभूत सत्य कह रहा हूँ .......

यह मैं एक अनुभूत सत्य कह रहा हूँ .......
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हमारे मन में यदि यश की, प्रशंसा की और प्रसिद्धि की कामना है तो ये हमें प्राप्त तो हो जायेंगी पर साथ साथ इसका निश्चित दंड भी अपयश, निंदा, और अपकीर्ति (बदनामी) के रूप में भुगतना ही पड़ेगा|
इसके विस्तार में नहीं जाऊंगा, इतना ही पर्याप्त है|
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जो कुछ भी हम इस सृष्टि में प्राप्त करना चाहते हैं वह तो हमें मिलता ही है पर उसका विपरीत भी निश्चित रूप से मिलता है| यह प्रकृति का नियम है|
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इस से बचने का एक ही उपाय है ........ हम कर्ताभाव, कामनाओं और अपेक्षाओं से मुक्त हों| इसके लिए हमें साधना/उपासना करनी ही पड़ेगी|
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भगवान परमशिव सब का कल्याण करें | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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