पञ्चमुखी महादेव .....
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं .....
ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
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(1) भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं .....
ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
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(1) भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
(2) पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
(3) दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
(4) उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
(5) पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
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भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
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योगियों को कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है...... जो पंचमुखी महादेव ही है| गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं|
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शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च || ॐ नमःशिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
(3) दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
(4) उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
(5) पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
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भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
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योगियों को कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है...... जो पंचमुखी महादेव ही है| गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं|
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शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च || ॐ नमःशिवाय || ॐ ॐ ॐ ||
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