Tuesday 23 October 2018

"निर्गुण" शब्द का क्या अर्थ हो सकता है ? हम "निर्गुण" कैसे हों ? ...

"निर्गुण" शब्द का क्या अर्थ हो सकता है ? हम "निर्गुण" कैसे हों ? ....
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इस सृष्टि में कुछ भी या कोई भी .... "गुणहीन" नहीं है| जो कुछ भी व्यक्त हो रहा है वह अपने "गुणों" से ही हो रहा है, यानि हर जीव या हर पदार्थ जो कुछ भी है, वह अपने "गुणों" से ही है| फिर "निर्गुण" तो कुछ है ही नहीं| अतः "निर्गुण" का क्या अर्थ हो सकता है? पारंपरिक रूप से जो निराकार ब्रह्म की उपासना करते हैं उन्हें "निर्गुणी" कहा जाता है, और प्रचलन में निराकार ब्रह्म ही "निर्गुण" कहा जाता है| पर यह बात पूरी तरह गले नहीं उतरती यानि कुछ जँचती नहीं है|
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एक दूसरा दृष्टिकोण भी है| गीता में भगवान "निस्त्रैगुण्य" होने का उपदेश करते हैं.....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||
अतः मेरी तो अल्प व सीमित बुद्धि से यही समझ में आता है कि जो "गुणातीत" है वही "निर्गुण" है| शास्त्रों में तीन गुण बताएँ हैं जिनसे यह सृष्टि संचलित है, वे हैं .... "सत्त्व, रज, तम", इनसे परे जाना ही "निर्गुण" होना हो सकता है|
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अब प्रश्न उठता है कि हम "निर्गुण" यानी "गुणातीत" कैसे हों?
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अब इधर-उधर की बात न करते हुए मैं अपने निज अनुभव की बात करता हूँ| साधना द्वारा अनुभूत मेरा निजी अनुभव तो यही है कि ..... "स्वयं में व्यक्त हो रहे प्राण तत्व की स्थिरता" ही "गुणातीत" यानि "निर्गुण" होना है| प्राण तत्व की अनुभूति निष्ठावान साधकों को हर समय निरंतर होती है| यह प्राण तत्व ही सुषुम्ना नाड़ी में कुण्डलिनी, और नासिका में वायु के रूप में व्यक्त होता है|
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शास्त्रों में कहा है .... "ॐ नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि"| यहाँ मेरे विचार से वायु जो श्वास रूप में चल रहा है वह व्रह्म बताया गया है| श्वास-प्रश्वास एक प्रतिक्रया है चंचल प्राण की| प्राण की चंचलता ही चंचल मन के रूप में व्यक्त होती है| श्वास में सत्व, रज व तम न हो, ..... यानि कोई स्पंदन न हो, यही "निर्गुण" होने का लक्षण है| यह पूर्ण रूप से संभव है| प्राण तत्व को स्थिर कर के खेचरी मुद्रा में बिना श्वास लिए भी जीवित रहा जा सकता है| (आगे साधना का विषय है, अतः और नहीं लिख रहा).
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अक्तूबर २०१८

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