पाप और पुण्य से परे की स्थिति ही सदा अभीष्ट हो .....
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सारे पाप और पुण्यों से परे की भी कोई न कोई स्थिति तो अवश्य होती ही होगी क्योंकि स्वयं भगवान ने ऐसा कहा है .....
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्| अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्||८:२८||
.
स्वयं के प्रयासों से तो कुछ नहीं हो सकता| हमारे पास उन्हें देने के लिए प्रेम के सिवाय तो अन्य कुछ है भी नहीं, वह भी उन्हीं का दिया हुआ है| वे ही अनुग्रह कर के कल्याण करेंगे| स्वयं साक्षात परमात्मा से कम कुछ भी पाने की कामना का कभी जन्म ही न हो|
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सारे पाप और पुण्यों से परे की भी कोई न कोई स्थिति तो अवश्य होती ही होगी क्योंकि स्वयं भगवान ने ऐसा कहा है .....
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्| अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्||८:२८||
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स्वयं के प्रयासों से तो कुछ नहीं हो सकता| हमारे पास उन्हें देने के लिए प्रेम के सिवाय तो अन्य कुछ है भी नहीं, वह भी उन्हीं का दिया हुआ है| वे ही अनुग्रह कर के कल्याण करेंगे| स्वयं साक्षात परमात्मा से कम कुछ भी पाने की कामना का कभी जन्म ही न हो|
ॐ तत्सत् !
५ अक्टूवर २०१८
५ अक्टूवर २०१८
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