Sunday 7 October 2018

मैं मानवतावादी नहीं, समष्टिवादी हूँ .....

मैं मानवतावादी नहीं, समष्टिवादी हूँ| "मानवता" व "इंसानियत" जैसे शब्द विदेशी मूल के हैं, भारतीय नहीं| ऐसे शब्दों का प्रयोग रूसी साहित्यकार मेक्सिम गोर्की द्वारा आरम्भ हुआ और सारे विश्व में फ़ैल गया| तत्कालीन रूसी इतिहास की जानकारी के कारण मैं ऐसे शब्दों से प्रभावित नहीं होता| मैं भीं किसी जमाने में मार्क्सवाद से प्रभावित था, पर वह मेरी भूल थी| जीवन में मुझे तृप्ति और संतुष्टि केवल "वेदांत" दर्शन में ही मिली है|
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किसानों और मजदूरों के नाम पर विश्व के जिन जिन देशों में भी तथाकथित सर्वहारा क्रांति से कुछ समय के लिए साम्यवादी सत्ताएँ आईं, जैसे रूस, चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया, पूर्व सोवियत संघ के देश, अल्बानिया, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी, पूर्व युगोस्लाविया के देश, पूर्व पूर्वी जर्मनी, यमन, बर्मा, कम्बोडिया व वियतनाम आदि आदि आदि में, वे अपने पीछे एक विनाशलीला छोड़ गईं| इन सब तथाकथित क्रांतियों के पीछे छल-कपट और असत्य था| इन तथाकथित क्रांति के नेताओं के जीवन में कुछ भी अनुकरणीय नहीं था| मार्क्सवाद और समाजवाद एक विफल सिद्धांत है जो कभी भी हमारा आदर्श नहीं हो सकता|

1 comment:

  1. भारत की सबसे बड़ी समस्या राष्ट्रीय चरित्र की है| हमारी मूल शिक्षा व्यवस्था के लोप होने के कारण भारत में इस समय "चोरी" करना सबसे बड़ा व्यवसाय बन गया है| करों की चोरी, बिजली चोरी, संसाधनों की चोरी, श्रम की चोरी और घूसखोरी .... ये सब दुर्भाग्य से हमारे राष्ट्रीय चरित्र हो गए हैं| यही हमारे विनाश का कारण है|

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