Sunday 7 October 2018

उपासना .....

उपासना .....
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उपासना का अर्थ मेरे लिए परमात्मा के समीप बैठना यानि एकात्मता है| साकार और निराकार के बारे में कोई भ्रम मुझे नहीं है| घनीभूत ऊर्जा ही साकारता है अन्यथा निराकारता| जैसे जम गया तो बर्फ अन्यथा पानी| उपासना और उपवास दोनों का अर्थ एक ही है| परमात्मा भी एक विचार ही है जो पूर्ण सत्यता है|
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मौन निर्विचार होना उपासना का प्रथम अंग है| मौन निर्विचार होना कोई बेहोशी नहीं अपितु एक ही विचार के साथ पूर्ण सचेतन एकात्मता है| हम स्वयं ही वह विचार बन जाएँ, अन्य कोई विचार न आये, यही निर्विचारता है| इसका अभ्यास करना ही साधना है|
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जो नित्य है वह आत्म है, और जो अनित्य है वह है अनात्म| आत्म तत्व के साथ एकात्मता और अनात्म का अदर्शन निर्गुणोपासना है| मेरा अनुभव तो यही है कि सृष्टि में कुछ भी निर्गुण नहीं है| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह सगुण है| जो नित्य है वह भी किसी न किसी रूप में सगुण ही है| हम कुछ कल्पना करते हैं, वह हमारी सृष्टि है जो सगुण है| सृष्टि से पूर्व यानी विचार आने से पूर्व जो था वह ही निर्गुण है| निर्गुण की कल्पना मेरी अल्प सीमित बुद्धि से परे है|
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सगुण का ध्यान करते करते यदि हम समाधिस्थ यानि समत्व में अधिष्ठित हो जाएँ तो इसे भी मैं निर्गुणोपासना ही कहूँगा, क्योंकि हम उस एक विचार के साथ एक हैं| यहाँ मेरी अनुभूति यानी जो मैं अनुभूत कर रहा हूँ वह ही मेरे लिए सत्य है|
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कई जन्मों के पुण्य फलों से परमात्मा को पाने की अभीप्सा का जन्म होता है| ह्रदय में उस तड़प का, उस प्यास का जन्म हुआ है यही हमारा सौभाग्य और परमात्मा की परम कृपा है| सगुण और निर्गुण के भाव से ऊपर उठकर परमात्मा का जो भी स्वरुप हमारे ह्रदय में आये उस के साथ निर्विकल्प यानि एकात्म हो जाना ही उपासना है|
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जो कुछ भी मैनें लिखा है वह मेरा अनुभव और मेरा विचार है| यहाँ मैं स्वयं के भावों को व्यक्त कर रहा हूँ| कोई आवश्यक नहीं है कि कोई इस से सहमत हो| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अक्तूबर २०१८

2 comments:

  1. भगवान से प्रार्थना :--- "हे प्रभु, इस लौकिक जीवन के अंत समय में, मैं यदि आप का स्मरण-चिंतन नहीं कर सकूँ तो प्रेमवश आप ही मेरा स्मरण कर लेना| मैं आप का ही अंश, अमृतपुत्र और आप के साथ एक हूँ| सभी प्राणी मेरे निजात्म हैं और निजात्मा ही सभी प्राणियों में व्यक्त है| इस एकात्म के कारण कोई शोक और मोह मुझे नहीं हो| जब यह शरीर शांत हो तब ये प्राण, महाप्राण में मिल जायें, और इस शरीर का अंत भी चिताग्निरूप यज्ञदेव द्वारा भस्म में हो| किसी भी तरह का कोई मोह या शोक न रहे| सभी जीवात्माओं का कल्याण हो|
    ॐ शांति शांति शांति||"

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  2. यदि संभव हो तो घर के एक कोने में जहाँ कोई व्यवधान न हो, एक ऐसा स्थान आरक्षित कर लें जिसे हम अपना स्वयं का कह सकें| उस स्थान का उपयोग सिर्फ उपासना के लिए करें जहाँ बैठकर हम नित्य नियमित भगवान का ध्यान कर सकें| एक नियमित समय भी तय कर लें जो हमारा अपना हो, जिसमें हम सिर्फ भगवान के साथ रह सकें| अपनी उपासना को कभी न भूलें| बार बार स्वयं को याद दिलाते रहें कि हमारा सर्वोपरी लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है|

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