Sunday, 1 January 2017

ग्रेगोरियन नववर्ष 2017 के आरम्भ पर संकल्प .....

(ॐ सत्यसंकल्पाय नमः) ग्रेगोरियन नववर्ष 2017 के आरम्भ पर संकल्प .....
-----------------------------------------------------------------------------
(1) समष्टि का कल्याण हो|
(2) सम्पूर्ण भारतवर्ष में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो|
(2) सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो|
(3) भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों|
(4) परमात्मा का साक्षात्कार .....जिस के लिए यह जन्म लिया है, वह कार्य संपन्न हो|
.
यह नववर्ष पूर्णरूपेण उस अनंत के स्वामी को समर्पित है जिसने स्वयं को माया के आवरण में छिपा रखा है| वे कितने विक्षेप उत्पन्न करेंगे? कितने गहरे आवरण में छिपेंगे? कब तक छिपेंगे? अंततः हैं तो वे भक्त-वत्सल ही| अपनी संतानों की करुण पुकार सुनकर उन्हें आना ही पड़ेगा| अब वे और नहीं छिप सकते|
.
एक मानसिक अवधारणा कि 'सब रूप उन्हीं के हैं', संतुष्ट नहीं करती| हमें अपनी भौतिक, प्राणिक और मानसिक आदि सभी चेतनाओं से ऊपर उनकी परम चेतना में ही परम साक्षात्कार से कम कुछ भी नहीं चाहिए| अब हम और नहीं भटक सकते|
.
हे अनंत के स्वामी, तुमने हमें जहाँ भी रखा है वहीँ तुम्हें आना ही पडेगा| अब शीघ्रातिशीघ्र चले आओ, तुम्हारे बिना अब जीना संभव नहीं है| किसी भी तरह की दार्शनिक अवधारणाएँ अब और रोक नहीं सकतीं| किसी भी तरह का ज्ञान नहीं, हमें तो प्रत्यक्ष साक्षात्कार चाहिए|
.
गहन ध्यान में तुम्हारी झलक हमें अवश्य मिलती है पर वह संतुष्ट नहीं करती| तुम्हारा साम्राज्य उससे भी ऊपर है जहाँ से तुम आभासित होते हो| जब चेतना गहन ध्यान में होती है तब दिखाई देने वाले स्वर्णिम, नीले और विराट श्वेत ज्योति मंडल से भी तुम परे हो| सदा आभासित होने वाले पंचमुखी महादेव के प्रतीक पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र से भी तुम परे हो| तुम प्रणव और नाद से भी परे हो| जो अगम और अवर्णनीय है, हे प्रभु वो तुम ही हो| अब तरह तरह के मानसिक और बौद्धिक आभासों से मुक्त करो और तुम्हें पाने के लिए हमारे ह्रदय में जल रही प्रचण्ड अग्नि और अभीप्सा को अपनी उपस्थिति से शांत करो| अब तुम्हें आना ही होगा| तुम अब और छिप नहीं सकते| जहाँ भी तुमने हमें रखा है वहीँ तुम्हें आना ही होगा| हम अब और कहीं भी जा नहीं सकते|
.
अब तुम्हीं साधक हो, तुम्हीं साधना हो और तुम्ही साध्य हो| तुम ही तुम हो, मैं नहीं|
हे सच्चिदानंद, तुम्हें प्रणाम ! अब देर मत करो|
यह नववर्ष तुम्हें ही समर्पित है| ॐ सच्चिदानंदाय नमः ||
.
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं| द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्||
एकं नित्यं विमलंचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्| भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि||
ॐ श्री गुरवे नमः |
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम |तस्मात कारुण्य भावेन, रक्षस्व परमेश्वर ||
.
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥

ॐ स्वस्ति | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. (1) समष्टि का कल्याण हो|
    (2) सम्पूर्ण भारतवर्ष में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो|
    (3) सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो|
    (4) भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों|
    (5) परमात्मा का साक्षात्कार .....जिस के लिए यह जन्म लिया है, वह कार्य संपन्न हो|
    .
    कोई कुछ भी कहे, मैं ईस्वी सन 2017 का स्वागत करता हूँ|
    यह सृष्टि .... परमात्मा के मन का एक विचार मात्र है| मैं इस ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम सम्पूर्ण सृष्टि को दे रहा हूँ, क्योंकि यह प्रेम मेरा नहीं, परमात्मा का है जिनके अथाह प्रेम सागर की गहराइयों में मैं डूबा हुआ हूँ|
    हे प्रियतम प्रभु, मेरी पृथकता भी आपके मन का एक विचार मात्र है| मैं तो हूँ ही नहीं, आप ही आप हो| आपकी जय हो|
    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

    ReplyDelete