ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें नहीं .....
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ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत "परमात्मा" है| पुस्तकों से सूचना मात्र मिलती है, ज्ञान नहीं| शास्त्र अनंत और अति गहन हैं| जीवन बहुत अल्प है, समय बहुत कम है| अत्यधिक अध्ययन भी एक भटकाव है| पुस्तकों से प्रेरणा ही मिल सकती है| कम से कम समय का अधिकाधिक लाभ लेना चाहिए|
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अतः सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ..... जो समय बचा है उसमें भगवान की भक्ति और ध्यान| यही जीवन का सदुपयोग होगा|
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मन वो ही रूप धारण कर लेता है जिस का हम निरंतर चिंतन करते हैं| हम भी फिर वो ही बन जाते हैं| यह शाश्वत सत्य है, अतः परमात्मा का निरंतर चिंतन हमें करना चाहिए|
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गुरु महाराज से मुझे तो सदा यही प्रेरणा मिलती है कि हम चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लें, कितने भी प्रवचन और उपदेश सुन लें, इनसे प्रभु नहीं मिलेंगे|
पुस्तकें, प्रवचन और उपदेश सिर्फ प्रेरणा दे सकते हैं, और अधिक कुछ भी नहीं|
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परमात्मा से प्रेम और उनका ध्यान, गहन ध्यान, गहनतर ध्यान, गहनतम ध्यान, और उस ध्यान की निरंतरता ........ बस यही प्रभु तक पहुंचा सकते है|
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हे गुरु रूप परम ब्रह्म, मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि आपका ध्यान कर सकूं| जब आप ही इस नौका के कर्णधार हैं, तो अब मेरी कोई कामना या अपेक्षा नहीं रही है| आपका साथ जब मिल ही गया है तो और कुछ भी नहीं चाहिए| आप ही साक्षात् परमब्रह्म हो|
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ओम् नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च।।
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ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत "परमात्मा" है| पुस्तकों से सूचना मात्र मिलती है, ज्ञान नहीं| शास्त्र अनंत और अति गहन हैं| जीवन बहुत अल्प है, समय बहुत कम है| अत्यधिक अध्ययन भी एक भटकाव है| पुस्तकों से प्रेरणा ही मिल सकती है| कम से कम समय का अधिकाधिक लाभ लेना चाहिए|
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अतः सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ..... जो समय बचा है उसमें भगवान की भक्ति और ध्यान| यही जीवन का सदुपयोग होगा|
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मन वो ही रूप धारण कर लेता है जिस का हम निरंतर चिंतन करते हैं| हम भी फिर वो ही बन जाते हैं| यह शाश्वत सत्य है, अतः परमात्मा का निरंतर चिंतन हमें करना चाहिए|
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गुरु महाराज से मुझे तो सदा यही प्रेरणा मिलती है कि हम चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लें, कितने भी प्रवचन और उपदेश सुन लें, इनसे प्रभु नहीं मिलेंगे|
पुस्तकें, प्रवचन और उपदेश सिर्फ प्रेरणा दे सकते हैं, और अधिक कुछ भी नहीं|
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परमात्मा से प्रेम और उनका ध्यान, गहन ध्यान, गहनतर ध्यान, गहनतम ध्यान, और उस ध्यान की निरंतरता ........ बस यही प्रभु तक पहुंचा सकते है|
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हे गुरु रूप परम ब्रह्म, मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि आपका ध्यान कर सकूं| जब आप ही इस नौका के कर्णधार हैं, तो अब मेरी कोई कामना या अपेक्षा नहीं रही है| आपका साथ जब मिल ही गया है तो और कुछ भी नहीं चाहिए| आप ही साक्षात् परमब्रह्म हो|
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ओम् नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च।।
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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