Tuesday 4 October 2016

अनंतता के महासागर में ......

अनंतता के महासागर में ......
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इस शारदीय नवरात्र में हम परमात्मा की मातृरूप में साधना करते हैं|
हे महाकाली, इस अहंकार और प्रमाद रूपी महिषासुर का और समस्त दुष्वृत्तियों का नाश करो|
हे महालक्ष्मी समस्त सद्वृत्तियाँ और गुण दो|
हे महासरस्वती आत्मज्ञान दो|
माँ, तुम शक्तिरूप में सब भूतों में और सर्वस्व में हो| माँ तुम्हे नमस्कार है|
धर्म और भारतवर्ष की रक्षा करो| भारत के भीतर और बाहर के शत्रुओं को नाश करने की हमें शक्ति दो|
भगवान राम ने भी शक्ति साधना की थी| हमारे भीतर भी राम तत्व को जागृत करो|
असत्य और अन्धकार की शक्तियो का हम नाश कर सकें ऐसी शक्ति दो|
माँ, हमें निज चरणों का प्यार दो| हम कभी तुम से पृथक ना हों| तुम्हारे चरणों में हमें स्थायी आश्रय मिले| किसी भी तरह का भेद अवशिष्ट न रहे|
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जगन्माता की अनंतता के महासागर में स्वयं को विलीन करने से बड़ा पुरुषार्थ व सौभाग्य और क्या हो सकता है? जन्म-जन्मान्तरों के स्वप्न साकार होकर माँ की परम ज्योति में मिल जाएँगे| समस्त वासनाएँ और कामनाएँ माँ की प्राप्ति की अभीप्सा में परिवर्तित होकर, उनके प्रेमसिन्धु में शांत हो जाएँगी|
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हे परम प्रिय माँ, अपनी शक्ति से इस देह के अणुओं को विखंडित कर अपने प्रेम की ज्योति में विलीन कर दो| आपके इस अनंत महासागर में अब एक लहर की तरह अन्य लहरों के साथ नहीं रहना चाहता| अपने से एकाकार करो|
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यह अंश आपकी पूर्णता को प्राप्त हो|
मैं आपके साथ एक हूँ, जीव नहीं शिव हूँ| उन सारे बंधनों को नष्ट करो जिन्होंने आपसे पृथक कर रखा है| आपकी पूर्णता से कम कुछ भी नहीं चाहिए|
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माँ, तुम्हारी जय हो | ॐ ॐ ॐ !!

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