Tuesday, 4 October 2016

साधना के लिए उचित वातावरण अति आवश्यक है .....

साधना के लिए उचित वातावरण अति आवश्यक है .....
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भगवान की प्राप्ति के लिए जब तक एक ऐसी छटपटाहट या अभीप्सा न हो जाए कि प्रभु के बिना जीवन व्यर्थ है तब तक कोई साधना सफल नहीं हो सकती| पीड़ा भी ऐसी हो जैसे किसी ने एक परात में जलते हुए कोयले भर कर सिर पर रख दिए हों, और हमें उस अग्नि की दाहकता से मुक्ति पानी हो| ऐसी भक्ति हमें शरणागति द्वारा भगवान की कृपा से ही मिल सकती है|
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इसके लिए पवित्र स्थान और पवित्र वातावरण में रहना अति आवश्यक है| मात्र इच्छा शक्ति से कुछ नहीं होता| वातावरण का प्रभाव इच्छा शक्ति से बहुत अधिक होता है| राजा जनक जैसे कुछ अपवाद होते हैं, पर सभी साधक राजा जनक नहीं हो सकते|
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एकांत पवित्र स्थानों में मन सहज रूप से भगवान में लग जाता है| घर में भी एक पूजाघर हो जिसकी पवित्रता की निरंतर रक्षा हो| ऐसे ही अच्छे संस्कारों वाले समान विचार के लोगों के साथ ही रहना चाहिए|
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सुख और दुःख दोनों से परे जाना होगा| सुख कि कामना ही दुःख का कारण है|
परमात्मा से भिन्न कुछ है ही नहीं तो सुखी कौन और दुखी कौन?
हम परमात्मा के अंश हैं अतः परमात्मा ही हमारा सच्चा रूप है| उसी का निरंतर चिंतन हमें करना चाहिए| इसके लिए उचित वातावरण का निर्माण करें और उसी में रहें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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