Tuesday 4 October 2016

आप हमारे विचारों में, वाणी में, हर व्यवहार में और अस्तित्व में व्यक्त हों .....

आप हमारे विचारों में, वाणी में, हर व्यवहार में और अस्तित्व में व्यक्त हों .....
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हे परम शिव, मुझे नहीं पता क्या सही है और क्या गलत, अब आप स्वयं ही स्वयं को तब तक मुझ में व्यक्त करो जब तक कि सारे भेद न मिट जाएँ|
सारे दोष दूर करो|
कहाँ कब किस से क्या और कैसे व्यवहार करना है वह भी आप स्वयं ही करें| मुझे मेरे विवेक और बल पर भरोसा नहीं है| मेरे विवेक और बल में भी आप स्वयं को व्यक्त करो|
सारी जड़ता को समाप्त करो|
मेरे ध्यान में, मेरी चेतना में भी सदैव आप ही रहो और निरंतर स्वयं को व्यक्त करो|
उपरोक्त सब मेरी कोई माँग नहीं है अपितु मेरा प्रेम और समर्पण है|
मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं हो|
यह समस्त प्रवाह आप ही हैं जिसमें कोई पृथक बिंदु या कण न रहे|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

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