भ्रूमध्य का स्थान अवधान का भूखा है .....
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जब परमात्मा से प्रेम हो जाए तब भ्रूमध्य में परमात्मा के प्रियतम रूप का
ध्यान करना चाहिए| बलात् प्रयास विफल होंगे| जब ह्रदय में प्रेम और समर्पण
का भाव होगा तभी सफलता मिलेगी|
ब्रह्ममुहूर्त का समय ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है| शुद्ध स्थान पर उचित वातावरण में ऊनी आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर के सुख से बैठ जाएँ| कमर सीधी रहे| गुरु रूप परमात्मा को प्रणाम कर उनसे मार्गदर्शन और सहायता की प्रार्थना कीजिये| फिर गुरु-प्रदत्त विधि से ध्यान करें|
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जिन्हें गुरु लाभ नहीं मिला है, वे अपने इष्ट देव/देवी से या भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें| भगवान श्रीकृष्ण सब गुरुओं के गुरु हैं| उनसे की गई प्रार्थना का उत्तर निश्चित रूप से मिलता है| मेरा व्यक्तिगत विचार है कि साधक को नित्य शिव का ध्यान और अर्थ सहित गीतापाठ अवश्य करना चाहिए|
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कुछ प्राणायाम करें और कमर सीधी रखते हुए देह को तनाव रहित शिथिल छोड़ दें| भ्रूमध्य में एक प्रकाश के कण की कल्पना कर के उसे समस्त अनंतता में फैला दें और यह भाव करें कि मैं यह देह नहीं बल्कि वह अनंतता हूँ, स्वयं परमात्मा ही इस देह से साँस ले रहे हैं और वे ही ध्यान कर रहे हैं| हम तो उनके एक उपकरण मात्र हैं| जो विचार आयें उन्हें आने दो, जो जाते हैं उन्हें जाने दो| तटस्थ रहो| सब कामनाओं को तिरोहित कर दो|
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सर्वाधिक महत्व इस भाव का है कि हम क्या हैं, इस भाव का अधिक महत्व नहीं है कि हम क्या कर रहे हैं| हम परमात्मा के प्रेम और उनकी अनंतता हैं, न कि यह देह| गुरु-प्रदत्त बीज मंत्र का या प्रणव का जप करो, फिर उसे सुनने का अभ्यास करते रहो| जितना हमारे ह्रदय में प्रभु के प्रति प्रेम होगा उतनी ही तीब्र गति से हम आगे बढ़ते रहेंगे और उसी अनुपात में परमात्मा से सहायता प्राप्त होगी|
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रात्रि को सोने पूर्व भी गहन ध्यान करें फिर परमात्मा की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाएँ| दिन का आरम्भ भी भगवान के ध्यान से करें, और पूरे दिन उन्हें स्मृति में रखें| भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण करना आरम्भ कर दें|
आरंभ में यह भाव रखो कि हम सब कुछ भगवान के लिए कर रहे हैं, फिर भगवान को ही कर्ता बनाकर जीवन की नौका उन्हीं के हाथों में सौंप दो|
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हमारा आचरण सद आचरण हो, यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है| यदि हमारे आचरण में शुद्धता नहीं रही तो आसुरी शक्तियाँ हमारे ऊपर अधिकार करने का पूरा प्रयास करेंगी| यदि जीवन में पवित्रता नहीं है तो ध्यान का अभ्यास मत करें| इससे लाभ की बजाय हानि ही होगी|
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कुछ लोग पूछते हैं कि ध्यान से क्या मिलेगा? मेरा उत्तर है कि ध्यान से कुछ भी नहीं मिलेगा, जो कुछ है वह भी चला जाएगा| सारी विषय-वासनाएँ और कामनाएँ समाप्त होने लगेंगी और आप इस दुनियाँ के भोगों के लायक नहीं रहेंगे|
जिन्हें कुछ चाहिए वे ध्यान न करें| ध्यान उनके लिए है जो सब कुछ परमात्मा को सौंप देना चाहते हैं| ध्यान से कोई सांसारिक लाभ नहीं है|
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ध्यान कोई क्रिया नहीं है, यह तो एक अक्रिया है| क्रिया-योग साधना तो प्रत्याहार है जिसके बाद धारणा और ध्यान है|
परमात्मा से प्रेम सबसे महत्वपूर्ण है| बिना प्रेम के कोई सफलता नहीं मिलेगी| हमें आरम्भ तो करना चाहिए फिर भगवान निश्चित रूप से मार्ग-दर्शन करेंगे|
भगवान भाव के भूखे है, हमारे ह्रदय की पुकार को वे अवश्य सुनेंगे|
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अपनी चेतना को भ्रूमध्य में रखने का प्रयास करें| वह स्थान अवधान का भूखा है| आगे का मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे| जो कुछ भी मेरे द्वारा लिखा गया है वह तो एक रूपरेखा मात्र है, इसमें मेरी कोई महिमा नहीं है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
ब्रह्ममुहूर्त का समय ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है| शुद्ध स्थान पर उचित वातावरण में ऊनी आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर के सुख से बैठ जाएँ| कमर सीधी रहे| गुरु रूप परमात्मा को प्रणाम कर उनसे मार्गदर्शन और सहायता की प्रार्थना कीजिये| फिर गुरु-प्रदत्त विधि से ध्यान करें|
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जिन्हें गुरु लाभ नहीं मिला है, वे अपने इष्ट देव/देवी से या भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें| भगवान श्रीकृष्ण सब गुरुओं के गुरु हैं| उनसे की गई प्रार्थना का उत्तर निश्चित रूप से मिलता है| मेरा व्यक्तिगत विचार है कि साधक को नित्य शिव का ध्यान और अर्थ सहित गीतापाठ अवश्य करना चाहिए|
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कुछ प्राणायाम करें और कमर सीधी रखते हुए देह को तनाव रहित शिथिल छोड़ दें| भ्रूमध्य में एक प्रकाश के कण की कल्पना कर के उसे समस्त अनंतता में फैला दें और यह भाव करें कि मैं यह देह नहीं बल्कि वह अनंतता हूँ, स्वयं परमात्मा ही इस देह से साँस ले रहे हैं और वे ही ध्यान कर रहे हैं| हम तो उनके एक उपकरण मात्र हैं| जो विचार आयें उन्हें आने दो, जो जाते हैं उन्हें जाने दो| तटस्थ रहो| सब कामनाओं को तिरोहित कर दो|
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सर्वाधिक महत्व इस भाव का है कि हम क्या हैं, इस भाव का अधिक महत्व नहीं है कि हम क्या कर रहे हैं| हम परमात्मा के प्रेम और उनकी अनंतता हैं, न कि यह देह| गुरु-प्रदत्त बीज मंत्र का या प्रणव का जप करो, फिर उसे सुनने का अभ्यास करते रहो| जितना हमारे ह्रदय में प्रभु के प्रति प्रेम होगा उतनी ही तीब्र गति से हम आगे बढ़ते रहेंगे और उसी अनुपात में परमात्मा से सहायता प्राप्त होगी|
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रात्रि को सोने पूर्व भी गहन ध्यान करें फिर परमात्मा की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाएँ| दिन का आरम्भ भी भगवान के ध्यान से करें, और पूरे दिन उन्हें स्मृति में रखें| भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण करना आरम्भ कर दें|
आरंभ में यह भाव रखो कि हम सब कुछ भगवान के लिए कर रहे हैं, फिर भगवान को ही कर्ता बनाकर जीवन की नौका उन्हीं के हाथों में सौंप दो|
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हमारा आचरण सद आचरण हो, यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है| यदि हमारे आचरण में शुद्धता नहीं रही तो आसुरी शक्तियाँ हमारे ऊपर अधिकार करने का पूरा प्रयास करेंगी| यदि जीवन में पवित्रता नहीं है तो ध्यान का अभ्यास मत करें| इससे लाभ की बजाय हानि ही होगी|
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कुछ लोग पूछते हैं कि ध्यान से क्या मिलेगा? मेरा उत्तर है कि ध्यान से कुछ भी नहीं मिलेगा, जो कुछ है वह भी चला जाएगा| सारी विषय-वासनाएँ और कामनाएँ समाप्त होने लगेंगी और आप इस दुनियाँ के भोगों के लायक नहीं रहेंगे|
जिन्हें कुछ चाहिए वे ध्यान न करें| ध्यान उनके लिए है जो सब कुछ परमात्मा को सौंप देना चाहते हैं| ध्यान से कोई सांसारिक लाभ नहीं है|
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ध्यान कोई क्रिया नहीं है, यह तो एक अक्रिया है| क्रिया-योग साधना तो प्रत्याहार है जिसके बाद धारणा और ध्यान है|
परमात्मा से प्रेम सबसे महत्वपूर्ण है| बिना प्रेम के कोई सफलता नहीं मिलेगी| हमें आरम्भ तो करना चाहिए फिर भगवान निश्चित रूप से मार्ग-दर्शन करेंगे|
भगवान भाव के भूखे है, हमारे ह्रदय की पुकार को वे अवश्य सुनेंगे|
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अपनी चेतना को भ्रूमध्य में रखने का प्रयास करें| वह स्थान अवधान का भूखा है| आगे का मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे| जो कुछ भी मेरे द्वारा लिखा गया है वह तो एक रूपरेखा मात्र है, इसमें मेरी कोई महिमा नहीं है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
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