Friday 7 October 2016

'गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी' , यही शास्त्रों का सार है :

'गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी' , यही शास्त्रों का सार है :
नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व .....
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भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है नवरात्र| इसमें भी शारदीय नवरात्र का महत्व अधिक है| इसका आध्यात्मिक महत्व जितना और जैसा मेरी सीमित बुद्धि से समझ में आया है उसे मैं यहाँ व्यक्त करने का दु:साहस कर रहा हूँ|
दुर्गा देवी तो एक है पर उसका प्राकट्य तीन रूपों में है, या यह भी कह सकते हैं कि इन तीनों रूपों का एक्त्व ही दुर्गा है| ये तीन रूप हैं ---- (१) महाकाली| (२) महालक्ष्मी (३) महासरस्वती| नवरात्र में हम माँ के इन तीनों रूपों की साधना करते हैं| माँ के इन तीन रूपों की प्रीति के लिए ही समस्त साधना की जाती है|

(१) महाकाली ---- ======== महाकाली की आराधना से विकृतियों और दुष्ट वृत्तियों का नाश होता है| माँ दुर्गा का एक नाम है -- महिषासुर मर्दिनी| महिष का अर्थ होता है -- भैंसा, जो तमोगुण का प्रतीक है| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये तमोगुण के प्रतीक हैं| महिषासुर वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| इनका बीज मन्त्र "क्लीम्" है|

(२) महालक्ष्मी ------ ======== ध्यानस्थ होने के लिए अंतःकरण का शुद्ध होना आवश्यक होता है जो महालक्ष्मी की कृपा से होता है| सच्चा ऐश्वर्य है आतंरिक समृद्धि| हमारे में सद्गुण होंगे तभी हम भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| तैतिरीय उपनिषद् में ऋषि प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु जब पहिले हमारे सद्गुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ तभी हमें सांसारिक वैभव देना| हमारे में सभी सद्गुण आयें यह महालक्ष्मी की साधना है| इन का बीज मन्त्र "ह्रीं" है|

(३) महासरस्वती ---- ========= गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अपनी आत्मा का ज्ञान ही ज्ञान है| इस आत्मज्ञान को प्रदान करती है -- महासरस्वती| इनका बीज मन्त्र है "अईम्"|
नवार्ण मन्त्र: ======= माँ के इन तीनों रूपों से प्रार्थना है कि हमें अज्ञान रुपी बंधन से मुक्त करो| बौद्धिक जड़ता सबसे अधिक हानिकारक है| यही अज्ञान है और यही हमारे भीतर छिपा महिषासुर है जो माँ की कृपा से ही नष्ट होता है|
सार ----- === नवरात्रि का सन्देश यही है कि समस्त अवांछित को नष्ट कर के चित्त को शुद्ध करो| वांछित सद्गुणों का अपने भीतर विकास करो| आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करो और सीमितताओं का अतिक्रमण करो| यही वास्तविक विजय है| मैंने मेरी बात कम से कम शब्दों में व्यक्त कर दी है, इससे अधिक लिखना मेरे लिए बौद्धिक स्तर पर संभव नहीं है| जय माँ| सबका कल्याण हो|

भवान्याष्टकम् :-
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न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १ ॥
भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २ ॥
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ३ ॥
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४ ॥
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५ ॥
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ६ ॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ७ ॥
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीमदादिशंकराचार्य विरचिता भवान्याष्ट्कं समाप्ता ॥

सार :
सच्चा ऐश्वर्य है आतंरिक समृद्धि| हमारे में सद्गुण होंगे तभी हम भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| तैतिरीय उपनिषद् में ऋषि प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु जब पहिले हमारे सद्गुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ तभी हमें सांसारिक वैभव देना|
हम बिना सद्गुणों के सांसारिक वैभव प्राप्त करना चाहते हैं, यही हमारे पतन का मुख्य कारण है|
ॐ ॐ ॐ !!
October 8, 2013

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