Friday 7 October 2016

मेरे विचार .....

मेरे विचार .....
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मुझे कई लोग सलाह देते हैं कि फलाँ फलाँ सम्प्रदाय के किसी संत को ही अपना गुरु बनाओ, फलाँ फलाँ ग्रन्थ से ही प्रेरणा लो ..... आदि आदि|
मैं ऐसी किसी सलाह का उत्तर नहीं देता पर यहाँ मेरे विचार स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि .....
>>> देह का धर्म और आत्मा का धर्म अलग अलग होता है|
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> यह देह जिससे मेरी चेतना जुड़ी हुई है, उसका धर्म अलग है| उसे भूख प्यास, सर्दी गर्मी आदि भी लगती है, यह और ज़रा, मृत्यु आदि भी उसका धर्म है|
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> आत्मा का धर्म परमात्मा के प्रति आकर्षण और परमात्मा के प्रति परम प्रेम की अभिव्यक्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं|
जब जीवन में परमात्मा की कृपा होती है तब सारे गुण स्वतः खिंचे चले आते हैं| उनके लिए किसी पृथक प्रयास की आवश्यकता नहीं है|
परमात्मा के प्रति प्रेम ही सबसे बड़ा गुण है जो सब गुणों की खान है|
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> अपना ईश्वर प्रदत्त कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करो| जहाँ विवेक कार्य नहीं करता वहाँ श्रुतियाँ प्रमाण हैं|
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> भगवान एक गुरु के रूप में मार्गदर्शन करते हैं पर अंततः गुरु एक तत्व बन जाता है| उसे किसी नाम रूप में नहीं बाँध सकते|
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> मेरी जाति, मेरा सम्प्रदाय और मेरा धर्म वही है जो परमात्मा का है|
मेरा एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से है, जो सब प्रकार के बंधनों से परे है|
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> जो व्यक्ति सब चिंताओं को त्याग कर निरंतर राम यानि भगवान का चिंतन करता है, क्या उसे यह सब सोचने का समय मिलता है कि उसके साथ क्या होगा और क्या नहीं होगा ? यह चिंता तो राम जी की हैं जिसे राम ही करेंगे|
> राम में वृत्ति स्थिर होना ही कृतार्थता है|
> बाहर कि बुराइयों को वह व्यक्ति ही दूर कर सकता है जिसने पहले अपने भीतर की बुराइयाँ दूर कर ली हों|
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सबको सप्रेम धन्यवाद, अभिनन्दन और नमन |
ॐ नमः शिवाय | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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