क्रिया योग साधना (Kriya Yoga Sadhna) :-----
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे | प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ||४:२९||"
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यह एक सूक्ष्म प्राणायाम और गुरुमुखी विद्या है जिसे गुरु प्रत्यक्ष रूप से अपने शिष्य को अपने सामने बैठाकर सिखाते हैं| अतः पुस्तक में पढ़ने मात्र से इसे कोई नहीं समझ सकता| जो साधक योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की क्रियायोग साधना पद्धति में दीक्षित हैं और उनके द्वारा सिखाई हुई क्रिया योग साधना का अभ्यास करते हैं वे इसे ठीक से समझ पायेंगे क्योंकि यह वही साधना पद्धति है जिसको महावातार बाबाजी ने "क्रिया योग" के नाम से पुनर्जीवित किया| यह साधना पद्धति लुप्त हो गयी थी, जिसे सन १८६१ ई.में महावतार बाबाजी ने श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय को सिखाकर, उनके माध्यम से पुनः प्रचलित किया| इस साधना को गुरु प्रदत्त विधि से, और गुरु की आज्ञा से ही करने का विधान है|
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इसे गोपनीय इस लिए रखा गया है क्योंकि इस साधना से कुण्डलिनी जागरण होता है, और साधना काल में साधक का आचार विचार यदि सही नहीं हो तो इस से लाभ की बजाय हानि ही हानि हो सकती है|
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यह एक वैदिक साधना है जिसका आरम्भ वैदिक काल से है| यह साधना संभवतः 'कृष्ण यजुर्वेद' के 'श्वेताश्वतरोपनिषद' में मिल सकती है| इसका वर्णन मुझे अन्यत्र भी कई स्थानों पर मिला है| पर पुस्तकों से कुछ भी समझ में नहीं आयेगा| एक अधिकृत श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सदगुरु ही इसे समझा सकता है|
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(इस विषय पर मैं अब कोई चर्चा या विचार विमर्श नहीं करूँगा, और न ही किसी प्रश्न का उत्तर दूंगा| "योगी कथामृत" (Autobiography of a Yogi) नामक पुस्तक के माध्यम से ही यह साधना पद्धति पूरे विश्व में लोकप्रिय हुई थी| जिनकी अधिक रूचि है वे उपरोक्त पुस्तक पढ़ सकते हैं, या नीचे दी हुई लिंक पर जाकर परमहंस योगानंद द्वारा लिखी गीता की टीका में उपरोक्त श्लोक का विस्तार से दिया अर्थ पढ़ सकते हैं|)
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संक्षेप में रूचि जागृत करने के लिए निम्न पंक्तियाँ लिख रहा हूँ| जो प्राणवायु सुषुम्ना के ऊपरी भाग में है, धीरे धीरे उसे रेचक क्रिया द्वारा सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही सहस्त्रार से मूलाधार चक्र में लाकर अपानवायु को अर्पित कर देते हैं| तत्पश्चात पूरक क्रिया द्वारा अपानवायु को सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही मूलाधार चक्र से उठाकर सहस्त्रार में प्राण वायु को अर्पित कर देते हैं| हर चक्र पर एक बीज मन्त्र का जप करते हैं| योगियों ने इसका नाम "केवली" प्राणायाम भी दिया है| इस क्रिया से प्राण और अपान की गति रुद्ध होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप प्राण तत्व अपनी चंचलता को छोड़ कर स्थिर होने लगता है| मन स्थिर होने लगता है, और चित्त व उसकी वृत्तियाँ भी नहीं रहतीं| उनका स्थान ज्ञान और आनंद ले लेता है| फिर भौतिक रूप से भी स्थिरता आने लगती है|
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इस श्लोक के विभिन्न अति प्रसिद्ध स्वनामधन्य आचार्यों द्वारा किये हुए अर्थ 'Gita Supersite' नामक वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, जहां से आप उन्हें कभी पढ़ भी सकते हैं| यह गुरुमुखी विद्या है जिसे अधिकृत गुरु ही अपने शिष्य को दे सकता है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०१८
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे | प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ||४:२९||"
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यह एक सूक्ष्म प्राणायाम और गुरुमुखी विद्या है जिसे गुरु प्रत्यक्ष रूप से अपने शिष्य को अपने सामने बैठाकर सिखाते हैं| अतः पुस्तक में पढ़ने मात्र से इसे कोई नहीं समझ सकता| जो साधक योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की क्रियायोग साधना पद्धति में दीक्षित हैं और उनके द्वारा सिखाई हुई क्रिया योग साधना का अभ्यास करते हैं वे इसे ठीक से समझ पायेंगे क्योंकि यह वही साधना पद्धति है जिसको महावातार बाबाजी ने "क्रिया योग" के नाम से पुनर्जीवित किया| यह साधना पद्धति लुप्त हो गयी थी, जिसे सन १८६१ ई.में महावतार बाबाजी ने श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय को सिखाकर, उनके माध्यम से पुनः प्रचलित किया| इस साधना को गुरु प्रदत्त विधि से, और गुरु की आज्ञा से ही करने का विधान है|
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इसे गोपनीय इस लिए रखा गया है क्योंकि इस साधना से कुण्डलिनी जागरण होता है, और साधना काल में साधक का आचार विचार यदि सही नहीं हो तो इस से लाभ की बजाय हानि ही हानि हो सकती है|
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यह एक वैदिक साधना है जिसका आरम्भ वैदिक काल से है| यह साधना संभवतः 'कृष्ण यजुर्वेद' के 'श्वेताश्वतरोपनिषद' में मिल सकती है| इसका वर्णन मुझे अन्यत्र भी कई स्थानों पर मिला है| पर पुस्तकों से कुछ भी समझ में नहीं आयेगा| एक अधिकृत श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सदगुरु ही इसे समझा सकता है|
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(इस विषय पर मैं अब कोई चर्चा या विचार विमर्श नहीं करूँगा, और न ही किसी प्रश्न का उत्तर दूंगा| "योगी कथामृत" (Autobiography of a Yogi) नामक पुस्तक के माध्यम से ही यह साधना पद्धति पूरे विश्व में लोकप्रिय हुई थी| जिनकी अधिक रूचि है वे उपरोक्त पुस्तक पढ़ सकते हैं, या नीचे दी हुई लिंक पर जाकर परमहंस योगानंद द्वारा लिखी गीता की टीका में उपरोक्त श्लोक का विस्तार से दिया अर्थ पढ़ सकते हैं|)
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संक्षेप में रूचि जागृत करने के लिए निम्न पंक्तियाँ लिख रहा हूँ| जो प्राणवायु सुषुम्ना के ऊपरी भाग में है, धीरे धीरे उसे रेचक क्रिया द्वारा सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही सहस्त्रार से मूलाधार चक्र में लाकर अपानवायु को अर्पित कर देते हैं| तत्पश्चात पूरक क्रिया द्वारा अपानवायु को सुषुम्ना मार्ग के भीतर भीतर से ही मूलाधार चक्र से उठाकर सहस्त्रार में प्राण वायु को अर्पित कर देते हैं| हर चक्र पर एक बीज मन्त्र का जप करते हैं| योगियों ने इसका नाम "केवली" प्राणायाम भी दिया है| इस क्रिया से प्राण और अपान की गति रुद्ध होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप प्राण तत्व अपनी चंचलता को छोड़ कर स्थिर होने लगता है| मन स्थिर होने लगता है, और चित्त व उसकी वृत्तियाँ भी नहीं रहतीं| उनका स्थान ज्ञान और आनंद ले लेता है| फिर भौतिक रूप से भी स्थिरता आने लगती है|
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इस श्लोक के विभिन्न अति प्रसिद्ध स्वनामधन्य आचार्यों द्वारा किये हुए अर्थ 'Gita Supersite' नामक वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, जहां से आप उन्हें कभी पढ़ भी सकते हैं| यह गुरुमुखी विद्या है जिसे अधिकृत गुरु ही अपने शिष्य को दे सकता है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०१८
Kriya Yoga (1)
Kriya
Yoga - the life-force control technique, the technique of
God-communion. Awakening of Kundalini, In-depth interpretation of the
Bhagavad Gita.
yogananda.com.au
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