Friday 23 December 2016

Original Sin की अवधारणा सबसे बड़ा झूठ है .....

Original Sin की अवधारणा सबसे बड़ा झूठ है .....
-----------------------------------------------------
मैं Original Sin की अवधारणा को नहीं मानता| यह सबसे बड़ा झूठ है जिस पर वर्तमान चर्चवाद टिका है| कोई भी मनुष्य जन्म से पापी नहीं है| हर व्यक्ति परमात्मा का अंश है| परमात्मा को प्राप्त करना हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है| परमात्मा को पाने का एकमात्र मार्ग .... परमप्रेम है|
.
परमात्मा की चेतना निरंतर अभ्यास के द्वारा स्वयं के ह्रदय में प्रकट हो| चलते-फिरते, उठते-बैठते, कार्य करते, विश्राम करते, और हर समय हमारी चेतना में एक ही भाव रहे कि भगवान् सर्वदा हमारी दृष्टि में हैं, और हम भगवान की दृष्टि में हैं| हमें मतलब सिर्फ उसी चेतना से है|
.
जीवन में धर्म का पालन कर के ही हम धार्मिक बन सकते हैं, स्वयं की व दूसरों की निंदा कर के या गालियाँ देकर नहीं| अपनी मान्यता के विरुद्ध कोई बात सुनते ही हम लोग भड़क जाते हैं, यह कोई धार्मिकता नहीं है|
.
जीवन में हमारे आदर्श उच्चतम हों, हमारे आचार-विचार शुद्ध व पवित्र हों| हमारी चेतना परमात्मा के साथ संयुक्त हो और हमें भगवान से भक्ति (परम प्रेम), विवेक और ज्ञान की प्राप्ति हो| जैसे जल की एक बूँद महासागर में मिलकर महासागर बन जाती है वैसे ही हमारा मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार परमात्मा की चेतना से जुड़कर परम शिवमय हो जाए|
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment