Friday 23 December 2016

निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें ......

निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें ......
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भ्रूमध्य में परमात्मा की एक बार तो साकार कल्पना करें, फिर उसे समस्त सृष्टि में फैला दें| सारी सृष्टि उन्हीं में समाहित है, और वे सर्वत्र हैं| उनके साथ एक हों, वे हमारे से पृथक नहीं हैं| स्वयं की पृथकता को उनमें समाहित यानि समर्पित कर दें|
उपास्य के सारे गुण उपासक में आने स्वाभाविक हैं|
आगे के अनुभव आप स्वयं प्राप्त करें| यह हर आत्मा की अपनी निजी समस्या और दायित्व है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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