क्राइस्ट का द्वितीय आगमन (Second Coming of Christ) :-------
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श्री श्री परमहंस योगानंद को जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) ने स्वयं पश्चिम में भेजा था ताकि उनकी मूल शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जा सके|
जीसस क्राइस्ट की मूल शिक्षा यह थी कि मनुष्य जन्म से पापी नहीं है, बल्कि परमात्मा की उपस्थिति से युक्त परमात्मा का अमृतपुत्र है|
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जीसस क्राइस्ट ने महावतार बाबाजी से प्रार्थना की थी कि उनकी शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जाए| महावतार बाबाजी की प्रेरणा से मुकुन्दलाल घोष को स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी के पास प्रशिक्षण के लिए भेजा गया| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने मुकुन्दलाल घोष को प्रशिक्षित किया और संन्यास में दीक्षित कर स्वामी योगानंदगिरी का नाम देकर पश्चिम में भेजा| स्वामी योगानंदगिरी तत्पश्चात पूरे विश्व में परमहंस योगानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए|
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स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी का बाबाजी से मिलना इलाहाबाद में कुम्भ के मेले में हुआ था| बाबाजी ने कहा कि पश्चिम में अनेक दिव्यात्माएँ परमात्मा की प्राप्ति के लिए व्याकुल हैं, उनके स्पंदन मेरे पास आ रहे हैं, वे सदा के लिए अन्धकार में नहीं रह सकतीं| उनके मार्गदर्शन के लिए मैं तुम्हारे पास एक बालक को भेजूंगा जिसे प्रशिक्षित कर तुम्हें पश्चिम में भेजना होगा| इस कार्य के लिए जिस बालक का चयन हुआ वह थे मुकुन्दलाल घोष|
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मुकुन्दलाल घोष अपने पूर्व जन्म में हिमालय में एक जीवनमुक्त सिद्ध योगी थे, उससे पूर्व के जन्म में वे इंग्लैंड के सम्राट थे, उससे भी पूर्व के जन्म में वे स्पेन के एक प्रसिद्ध सेनापती थे, और उससे भी पूर्व महाभारत के एक प्रसिद्ध योद्धा थे| जन्म से ही वे जीवन्मुक्त थे और पश्चिम में सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए ही उन्होंने जन्म लिया था| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने उनको वेदान्त, योग आदि दर्शन शास्त्रों में पारंगत किया और जीसस क्राइस्ट द्वारा दी गयी सनातन धर्म की मूल शिक्षा के बारे में भी बताया जिसको पुनर्जीवित करने का दायित्व उन को सौंपा गया था|
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स्वामी योगानंदगिरी का पश्चिम में आगमन असत्य और अन्धकार की शक्तियों के विरुद्ध एक युद्ध था| उनका पश्चिम में आगमन क्राइस्ट का द्वितीय आगमन यानि Second Coming of Christ था| उन्होंने पश्चिमी जगत को वो ही शिक्षाएं दीं जो जीसस क्राइस्ट ने अपने समय में देनी चाहीं थीं|
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सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ | आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग .... परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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श्री श्री परमहंस योगानंद को जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) ने स्वयं पश्चिम में भेजा था ताकि उनकी मूल शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जा सके|
जीसस क्राइस्ट की मूल शिक्षा यह थी कि मनुष्य जन्म से पापी नहीं है, बल्कि परमात्मा की उपस्थिति से युक्त परमात्मा का अमृतपुत्र है|
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जीसस क्राइस्ट ने महावतार बाबाजी से प्रार्थना की थी कि उनकी शिक्षा को उनके अनुयायियों में पुनर्जीवित किया जाए| महावतार बाबाजी की प्रेरणा से मुकुन्दलाल घोष को स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी के पास प्रशिक्षण के लिए भेजा गया| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने मुकुन्दलाल घोष को प्रशिक्षित किया और संन्यास में दीक्षित कर स्वामी योगानंदगिरी का नाम देकर पश्चिम में भेजा| स्वामी योगानंदगिरी तत्पश्चात पूरे विश्व में परमहंस योगानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए|
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स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी का बाबाजी से मिलना इलाहाबाद में कुम्भ के मेले में हुआ था| बाबाजी ने कहा कि पश्चिम में अनेक दिव्यात्माएँ परमात्मा की प्राप्ति के लिए व्याकुल हैं, उनके स्पंदन मेरे पास आ रहे हैं, वे सदा के लिए अन्धकार में नहीं रह सकतीं| उनके मार्गदर्शन के लिए मैं तुम्हारे पास एक बालक को भेजूंगा जिसे प्रशिक्षित कर तुम्हें पश्चिम में भेजना होगा| इस कार्य के लिए जिस बालक का चयन हुआ वह थे मुकुन्दलाल घोष|
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मुकुन्दलाल घोष अपने पूर्व जन्म में हिमालय में एक जीवनमुक्त सिद्ध योगी थे, उससे पूर्व के जन्म में वे इंग्लैंड के सम्राट थे, उससे भी पूर्व के जन्म में वे स्पेन के एक प्रसिद्ध सेनापती थे, और उससे भी पूर्व महाभारत के एक प्रसिद्ध योद्धा थे| जन्म से ही वे जीवन्मुक्त थे और पश्चिम में सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए ही उन्होंने जन्म लिया था| स्वामी श्रीयुक्तेश्वरगिरी ने उनको वेदान्त, योग आदि दर्शन शास्त्रों में पारंगत किया और जीसस क्राइस्ट द्वारा दी गयी सनातन धर्म की मूल शिक्षा के बारे में भी बताया जिसको पुनर्जीवित करने का दायित्व उन को सौंपा गया था|
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स्वामी योगानंदगिरी का पश्चिम में आगमन असत्य और अन्धकार की शक्तियों के विरुद्ध एक युद्ध था| उनका पश्चिम में आगमन क्राइस्ट का द्वितीय आगमन यानि Second Coming of Christ था| उन्होंने पश्चिमी जगत को वो ही शिक्षाएं दीं जो जीसस क्राइस्ट ने अपने समय में देनी चाहीं थीं|
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सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ | आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग .... परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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