Saturday, 24 December 2016

मेरी "माँ" सर्वत्र सर्वव्यापी है .....

मेरी "माँ" सर्वत्र सर्वव्यापी है .....
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हे प्रभु की अनंतता ..... सर्वव्यापी ओंकार स्पंदन के रूप में तुम मेरी माता हो|
मैं तुम्हारा पुत्र हूँ| मेरी निरंतर रक्षा करो|
मुझे अपनी पूर्णता की ओर सुरक्षित ले चलो|
हे करुणामयी माँ, तुम्हारी कृपा के बिना मैं एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकता|
तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरा आश्रय हो|
तुम्हारे बिना मैं निराश्रय हूँ|
तुम्हारा पूर्ण प्रेम मुझमें व्यक्त हो| मेरी सब बाधाओं को दूर करो|
मेरी चेतना में तुम निरंतर रहो| तुम्हारी ही चेतना मेरी चेतना हो|
मुझे अपने साथ एकाकार करो, मुझे अपनी पूर्णता दो|
इससे कुछ कम पाने की कभी कामना ही न हो|
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हे जगन्माता, मेरा अस्तित्व मात्र ही असत्य और अन्धकार की शक्तियों के विरुद्ध एक युद्ध हो| तुहारे चेतना रूपी प्रकाश से मैं सदा आलोकित रहूँ| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. यह समस्त ब्रह्माण्ड मेरा घर है और सारी सृष्टि मेरा परिवार|
    मेरे घर में शिव और शक्ति, मात्र इन दोनों का ही निवास है|
    ये दोनों ही इस घर के स्वामी और स्वामिनी हैं|
    जब स्वामी सोते है तो स्वामिनी जागती हैं और दोनों के ही समस्त कार्य करती हैं|

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