May 22, 2015
क्या जीवन में परमात्मा की कोई आवश्यकता है? .....
क्या जीवन में परमात्मा की कोई आवश्यकता है? .....
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अधिकांश लोग कहते हैं की हमारे पास परमात्मा पर ध्यान के लिए, साधना के लिए, भजन के लिए समय नहीं है| कुछ लाभ होता है या घर में उससे चार पैसे आते हैं तो कुछ सोचें भी अन्यथा क्यों समय नष्ट करें| यह तो निठल्ले लोगों का काम है|
दूसरे कुछ लोग कहते हैं कि जब तक हाथ पैर चलते हैं तब तक खूब पैसे कमाओ, अपना और अपने परिवार व बच्चों का जीवन सुखी करो| जब खाट पकड़ लेंगे तब भगवान को याद करेंगे|
तीसरी तरह के लोग होते हैं कि अभी हमारा समय नहीं आया है| जब समय आयेगा तब देखेंगे|
चौथी प्रकार के लोग हैं जो कहते हैं कि अभी जिंदगी में कुछ मजा, मौज-मस्ती की ही नहीं है| मौज मस्ती से दिल भरने के बाद सोचेंगे|
पांचवीं तरह के लोग हैं जो कहते हैं कि जैसा हम विश्वास करते या सोचते हैं, वह ही सही है, बाकि सब गलत| हमारी बात ना मानो तो तुम जीने लायक ही नहीं हो|
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उपरोक्त सभी को सादर नमन|
दुनिया अपने हिसाब से अपने नियमों से चल रही है, और चलती रहेगी| कौन क्या सोचता है और क्या कहता है क्या इसका कोई प्रभाव पड़ता है?
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जीवन में एक ही पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है, वह पाठ शाश्वत है| जो नहीं सीखते हैं, वे प्रकृति द्वारा सीखने को बाध्य कर दिए जाते हैं|
भगवान हो या ना हो, विश्वास करो या मत करो कोई अंतर नहीं पड़ता|
किसी से प्रभावित हुए बिना अपना कार्य करते रहो| प्रकृति सब कुछ सिखा देगी|
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
May 22, 2015
May 22, 2015
एक बार मैं फ्रंटियर मेल से सवाई माधोपुर से मुंबई जा रहा था था| उस जमाने में प्रथम श्रेणी के डिब्बों में नहाने की सुविधा भी होती थी| प्रातः शीघ्र उठकर नहा कर मुंबई आने तक ध्यान करने बैठ गया| डेढ़-दो घंटे ध्यान करने के बाद मुंबई सेन्ट्रल आ गया तो तीन अन्य सहयात्रियों ने चलते चलते मुझे कोई बहुत बड़ा व्यापारी बताया और कहा कि दिन भर व्यापार में उलटा-सीधा करने से पहिले थोडा बहुत परमात्मा का ध्यान करने से पाप-पुण्य सब बराबर हो जाता है| वे भी अपनी अपनी सोच से सही थे| भगवान को आप किसी पर थोप तो नहीं सकते| कोई कहे कि मैं उगते सूर्य में विश्वास नहीं करता या करता हूँ तो इससे सूर्य पर क्या अंतर पड़ता है?
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