Sunday 21 May 2017

सबके लिए एक ही मार्ग नहीं हो सकता .....

सबके लिए एक ही मार्ग नहीं हो सकता .....
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सारे मार्ग और सिद्धांत हमारे लिए हैं, हम उनके लिए नहीं| हम सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के लिए हैं| सब सिद्धांतों और मार्गों से ऊपर उठना ही पड़ेगा| परमात्मा हमारे कूटस्थ में सर्वदा विराजमान हैं| हमें कूटस्थ का अनुशरण करने और कूटस्थ चैतन्य में ही स्थिर रहने का निरंतर प्रयास करना चाहिए जहाँ भगवान की निरंतर अनुभूति होती है|
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यदि कोई मुझ से पूछे कि ध्रुवतारा कहाँ है तो मैं अपनी अंगुली से दिखाऊँगा कि ध्रुव तारा वहाँ है| एक बार ध्रुवतारे को देखने के पश्चात न तो मेरी अंगुली का कोई महत्व है और न ही मुझ बताने वाले का|
किसी मार्गदर्शिका को देखते हुए मैं अपने गंतव्य पर जाता हूँ| जब एक बार गंतव्य दिखाई दे जाता है तो मार्गदर्शिका की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि गंतव्य मेरे सामने है|
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वैसे ही एक बार परमात्मा की एक झलक मिल जाए तो इधर उधर देखना ही भटकाव है| पागल की तरह उनके पीछे पड़ जाओ| हमारे लक्ष्य परमात्मा हमारे समक्ष सर्वदा हैं| उन्हें छोड़कर इधर उधर कहीं भी नहीं देखना चाहिए|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. एक आन्तरिक प्रेरणा से अब आगे का सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है| ज्योतिर्मय कूटस्थ अक्षर परम ब्रह्म का ध्यान, और क्रियायोग मेरी साधना है| जिनका मैं ध्यान करता हूँ वे ही भगवान परम शिव हैं, वे ही मेरे गुरु और सर्वस्व हैं| मेरा समर्पण उन्हीं के प्रति है| वे ही एकमात्र कर्ता हैं| साध्य भी वे ही हैं तो साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही हैं| एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है|
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    उनकी परम कृपा है कि उन्होंने मुझे समझने की जितनी क्षमता दी है, उस क्षमतानुसार आध्यात्मिक मार्ग में किसी भी तरह का कणमात्र भी कोई संदेह या शंका नहीं है| उनकी कृपा पर ही आश्रित हूँ| अन्य किसी से कोई अपेक्षा नहीं है| ध्यान में तो एकमात्र अस्तित्व ही उन्हीं का है, अन्य कोई है ही नहीं

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